मैक्स सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल, साकेत नई दिल्ली में 48 वर्षीया मरीज का साइटोरिडक्टिव सर्जरी (सीआरएस) के जरिये दो चरणों की नोवल प्रक्रिया से इलाज किया गया और इसके बाद उसे हाइपरथर्मिक इंट्रापेरिटोनियल कीमोथेरापी (एचआईपीईसी) दी गई।
लखनऊ : सितंबर 2016 में स्वस्थ दिखने वाली 48 वर्षीया अंजू पंसारी ने पेट में गंभीर गड़बड़ी और पेट फुला रहने की शिकायत की। हालांकि इससे पहले उन्हें किसी तरह की कोई बीमारी नहीं हुई थी। वह और उसके परिवार वालों को इस बात का अंदाजा तक नहीं था कि उसे तीसरे चरण के सी ओवरियन कैंसर के रूप में इतनी गंभीर बीमारी भी हो सकती है और यह उसके पेट में व्यापक रूप से फैल चुकी है। अपने क्षेत्र के कुछ डॉक्टरों से परामर्श लेने के बाद भी उसकी स्थिति नहीं सुधरी। लेकिन उसके परिवारवालों ने उम्मीद नहीं छोड़ी और चेक—अप के लिए मरीज को साकेत, नई दिल्ली स्थित मैक्स सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल ले आए।
मैक्स के सर्जनों को मरीज में एडवांस्ड ओवरियन कैंसर का पता चला जो उसके पेट (पेरिटोनियम) को सुरक्षा कवर देने वाली बारीक झिल्ली तक फैल चुका था। कैंसर के तेजी से फैल जाने का ख्याल रखते हुए दिल्ली स्थित मैक्स इंस्टीट्यूट आॅफ कैंसर केयर के चेयरमैन डॉ. हरित चतुर्वेदी के नेतृत्व में आॅन्कोलॉजिस्ट टीम ने साइटोरिडक्टिव सर्जरी (सीआरएस) के जरिये दो चरणों की नोवल प्रक्रिया से इलाज और इसके बाद मरीज को हाइपरथर्मिक इंट्रापेरिटोनियल कीमोथेरापी देने का फैसला किया। यह प्रक्रिया एडवांस्ड कोलोरेक्टल कैंसर, एपेंडिसियल, प्राइमरी पेरिटोनियल और कुछ अन्य असाध्य स्थितियों से पीड़ित ऐसे मरीजों को बचाने के लिए सर्वश्रेष्ठ इलाज पद्धति है।
इस प्रक्रिया के बारे में डॉ. हरित चतुर्वेदी बताते हैं, ‘पेरिटोनियम का कैंसर, चाहे वह पेरिटोनियम से ही उत्पन्न हुआ हो या ओवरी, कोलोन, पेट आदि से फैला हो, पहले असाध्य रोग माना जाता था। सीआरएस और एचआईपीईसी के आविष्कार के बाद दुनिया बहुत आगे निकल चुकी है। इन दोनों तकनीकों ने हमें कैंसर पर बेहतर नियंत्रण पाने का अवसर दिया है। पिछले सात वर्षों के दौरान मैक्स हॉस्पिटल में हम सीआरएस और एचआईपीईसी सर्जरी के जरिये एडवांस्ड कैंसर के लगभग 150 मामलों का सफल इलाज कर चुके हैं और अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन दोनों स्थिति में इसके अच्छे परिणाम मिले हैं।
मैक्स सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल, दिल्ली में कैंसर केयर/आॅन्कोलॉजी विभाग के एसोसिएट निदेशक डॉ. देवव्रत आर्या ने कहा, ‘साइटोरिडक्शन के बाद हाइपरथर्मिक इंट्राआॅपरेटिव कीमोथेरापी (एचआईपीईसी) दी जाती है जिसमें मेडिकल आॅन्कोलॉजिस्ट 90 मिनट तक 42 डिग्री तापमान पर कीमोथेरापी दवा मिश्रित गर्म लेप पेट पर लगाए रहते हैं ताकि अदृश्य कैंसर कोशिकाओं पर यह असर कर सके और बेहतर रोग नियंत्रण मिल सके। उच्च तापमान पर लेप को गर्म कर इसे एक निर्धारित समय तक लगाए रखने से इसकी प्रभावशीलता बढ़ जाती है। इससे कीमोथेरापी के दौरान कैंसर कोशिकाओं पर ज्यादा असर पड़ता है। बेहतर अवशोषण से ट्यूमर के आसपास मौजूद स्वस्थ टिश्यू पर कीमोथेरापी का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है और इसका साइड इफेक्ट भी कम हो जाता है। हमें सर्वश्रेष्ठ परिणाम पाने के लिए एचआईपीईसी के बाद एक और कीमोथेरापी जारी रखना चाहिए।’
मैक्स सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल, दिल्ली में कैंसर केयर/आॅन्कोलॉजी के एसोसिएट निदेशक डॉ. असित अरोड़ा ने कहा, ‘सीआरएस और एचआईपीईसी एक लंबी सर्जरी है जिसमें 6 से 12 घंटे लग जाते हैं। मरीज को एथेस्थेसिया, कार्डियोलॉजी, नेफ्रोलॉजी और अन्य विभागों की टीम के साथ समन्वय बनाने के लिए तैयार रहना पड़ता है। सर्जिकल टीम सुनिश्चित करती है कि कीमोथेरापी से पहले मरीज कोई अन्य बीमारी न रहे। मल्टीस्पेशियल्टी अस्पताल में इस तरह के गंभीर मामले टीम के लिए ज्यादा मुश्किलभरा नहीं होता है और अच्छे परिणाम मिल जाते हैं।’
साइटोरिडक्शन पद्धति के बारे में मैक्स सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल, दिल्ली में कैंसर केयर/आॅन्कोलॉजी की कंसल्टेंट डॉ. अदिति चतुर्वेदी ने कहा, ‘मैक्स में बड़ी सर्जिकल आॅन्कोलॉजी टीम होने के कारण जटिल मामले भी आसान हो जाते हैं। टीम का हर सदस्य एक—दूसरे की सुविधा का ख्याल रखता है। ट्यूमर बोर्ड हमें यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि हम प्रत्येक मरीज के इलाज के लिए सर्वश्रेष्ठ विकल्प आजमाने में सक्षम हैं।’
पेरिटोनियम कैंसर के मामले बहुत कम ही होते हैं और दुनिया में इसके इलाज की बहुत अच्छी व्यवस्था नहीं है। पेरिटोनियल कैंसर के इलाज में पेरिटोनियल सरफेस आॅन्कोलॉजी अत्यंत विशिष्ट शाखा मानी जाती है। मैक्स सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल में साइटोरिडक्शन और एचआईपीईसी सर्जरी की उपलब्धता पेरिटोनियम कैंसर के चौथे चरण में पहुंच चुके मामलों के लिए वरदान साबित हुई है।
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