दिल्ली के मैक्स सुपर स्पेशियल्टी अस्पताल ने गैस्ट्रो—इंटेस्टाइनल डिसआॅर्डर के इलाज के लिए आधुनिक तकनीकों की पेशकश की

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दिल्ली के मैक्स सुपर स्पेशियल्टी अस्पताल ने गैस्ट्रो—इंटेस्टाइनल डिसआॅर्डर के इलाज के लिए आधुनिक तकनीकों की पेशकश की

 दिल्ली के मैक्स सुपर स्पेशियल्टी अस्पताल ने गैस्ट्रो—इंटेस्टाइनल डिसआॅर्डर के इलाज के लिए आधुनिक तकनीकों की पेशकश की

कानपुर, 12 मार्च, 2021: दिल्ली स्थित मैक्स सुपर स्पेशियल्टी अस्पताल ने गैस्ट्रो—इंटेस्टाइनल संबंधी डिसआॅर्डर की डायग्नोसिस और इलाज के लिए कई आधुनिक तकनीकें शुरू की हैं। मोटराइज्ड पावर स्पाइरल एंटेरोस्कोपी (एमपीएसई) और पेरोरल एंडोस्कोपिक मायोटॉमी (पीओईएम) जैसी चिकित्सा विज्ञान में हुई तरक्की से छोटी आंत संबंधी रोग और अचलेसिया कार्डिया नामक दुर्लभ डिसआॅर्डर से पीड़ित हजारों मरीजों को लाभ मिल रहा है। अचलेसिया कार्डिया में मरीज को गले से पेट तक भोजन के निर्बाध प्रवाह में बहुत कठिनाई आती है।

अचलेसिया में भोजन नली की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है और यह भोजन तथा पानी के निर्बाध प्रवाह को बाधित कर देता है। मरीज को निगलने में कठिनाई, भोजन या पानी छाती में अटकने का अहसास, सीने में दर्द, भोजन की उल्टी करने और वजन कम होने जैसी समस्याएं होने लगती है।

मैक्स सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल, साकेत नई दिल्ली में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. विकास सिंगला ने कहा, 'मरीज में अचलेसिया की पहचान के लिए एसोफिगल मैनोमेट्री जांच कराई जाती है। इसमें भोजन और पानी को पेट तक पहुंचाने में मदद करने वाली मांसपेशियों की क्षमता और कार्यप्रणाली नापने के लिए मरीज के मुंह के जरिये भोजन नली में एक पतली पाइप डालकर जांच की जाती है। इस प्रक्रिया में सिर्फ 20 मिनट लगते हैं और मरीज को बेहोश करने की जरूरत भी नहीं पड़ती है। मैक्स सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल देश के उन चंद संस्थानों में से एक है जहां ओसोफिगल मैनोमेट्री कराई जाती है। हम पेरोरल एंडोस्कोपिक मायोटोमी (पीओईएम) नामक एंडोस्कोपिक पद्धति से अचलेसिया का इलाज करते हैं। यह एक सुरक्षित पद्धति है जिसमें कोई चीर—फाड़ नहीं करनी पड़ती है। इसमें लंबे समय तक अस्पताल में रहने की जरूरत भी नहीं पड़ती और इसके शानदार परिणाम लंबे समय तक बने रहते हैं। मरीज सर्जरी के ठीक 24 घंटे बाद लिक्विड भोजन लेना शुरू कर सकते हैं।

मैक्स सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल ने उत्तर भारत में पहली बार छोटी आंत संबंधी बीमारियों की डायग्नोसिस और इलाज के लिए मोटराइज्ड पावर स्पाइरल एंटरोस्कोपी नामक मिनिमली इनवेसिव टेक्नोलॉजी भी शुरू की है। छोटी आंत तक सामान्य एंडोस्कोप का पहुंचना संभव नहीं होता है इसलिए इसमें किसी एंडोस्कोपिस्ट का निर्णय तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है।

छोटी आंत गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम का एक अभिन्न हिस्सा है। कई बीमारियां इसे प्रभावित कर सकती हैं इसलिए गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याओं से पीड़ित मरीजों के इलाज के लिए आंत के इस हिस्से का मूल्यांकन महत्वपूर्ण हो जाता है। छोटी आंत संबंधी बीमारियों के लक्षणों में पेट में बार—बार दर्द होना, लगातार पतला दस्त होना, उल्टी, मल का रंग काला होना, हीमोग्लोबिन में आश्चर्यजनक कमी आना और वजन घटना शामिल हैं। ऐसे मामलों में छोटी आंत की संपूर्ण जांच कराना जरूरी है।

एंटरोस्कोपी छोटी आंत की एंडोस्कोपी होती है। डॉक्टरों के लिए यह प्रक्रिया अपनाना बहुत चुनौतीपूर्ण होता है क्योंकि मुंह या गुदा मार्ग से छोटी आंत तक पहुंचना मुश्किल होता है। परंपरागत रूप से उपलब्ध एंटरोस्कोपी प्रक्रिया बहुत उबाऊ और लंबे समय तक चलने वाली होती है।

डॉ. सिंगला ने कहा, 'मोटराइज्ड पावर स्पाइरल एंटरोस्कोपी का आविष्कार छोटी आंत के मूल्यांकन करने और इसके अंदर की हलचल देखने के लिए गेमचेंजर साबित हुआ है। यह पहला अवसर है कि इस आधुनिक डायग्नोस्टिक और इंटरवेंशनल टूल को उत्तर भारत में उपलब्ध कराया गया है। इसके आसान इस्तेमाल के कारण डॉक्टरों को बहुत कम समय में ही आंत की हलचल को नैविगेट करने की असाधारण क्षमता मिल जाती है, पावर स्पाइरल एंटरोस्कोपी से छोटी आंत संबंधी बीमारियों से पीड़ित मरीजों की डायग्नोसिस और रोग प्रबंधन के क्षेत्र में बड़ा बदलाव आया है।'

डॉ. सुरक्षित टी के ने कहा, 'इस टेक्नोलॉजी से हमें जख्म की बायोप्सी, ट्यूमर और पॉलिप निकालने, रक्तस्राव पर काबू पाने, संकीर्ण हिस्से को फैलाने समेत छोटी आंत के अंदर तेजी से उपचार प्रक्रिया निपटाने की सुविधा मिली है। मैक्स हॉस्पिटल में हम कैप्सूल एंडोस्कोपी जैसी पहले से मौजूद सेवाओं के अलावा पावर स्पाइरल एंटरोस्कोपी की भी नियमित पेशकश कर रहे हैं।' 

गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिसआॅर्डर के लिए अन्य टेक्नोलॉजी भी मैक्स सुपर स्पेशियल्टी अस्पताल में  उपलब्ध हैं जिनमें गैस्ट्रो ओसोफिगल रिफ्लक्स डिजीज की पुष्टि के लिए 24 घंटे पीएच मेट्री प्रतिरोधी जांच भी शामिल है। प्रतिरोधी जांच के साथ जांच कराने से रिफ्लक्स रोग के बारे में इसके प्रकार और गंभीरता संबंधी बेहतर जानकारी मिल पाती है। यह बाह्य मरीज के लिए अपनाई जाने वाली पद्धति की तुलना में परिष्कृत लेकिन सरल जांच है।