नई दिल्ली. अगर आपको सांस लेने में कठिनाई हो रही है या सांस उखड़ रही है, छाती में जकड़न है, सांस लेते हुए घर्र-घर्र की आवाज आ रही है, पल्स रेट काफी बढ़ा हुआ है, तेज खांसी आ रही है, नाखून-होंठ नीले पड़ गए है तो यह तीव्र अस्थमा अटैक के लक्षण हो सकते हैं. ऐसी स्थिति में, आपको अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. यदि आपको अस्थमा डायग्नोज होता है तो सबसे पहले डॉक्टर्स द्वारा दी गई दवाओं का सेवन कर आपको अपनी बीमारी नियंत्रण में लानी है. अब आपकी यह बीमारी और आगे न बढ़े या उस पर नियंत्रण बना रहे, इसके लिए आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं है, बल्कि इसका इलाज आपकी रसोई में ही छिपा हुआ है.
शालीमार बाग मैक्स हॉस्पिटल में पल्मोनोलॉजी विभाग के निदेशक डॉ. इंदर मोहन चुघ के अनुसार, ‘अस्थमा के रोगियों के लिए शहद वरदान है. विटामिन बी और कई मिनरल से युक्त शहद आपके म्यूकस को पतला करता है और उसे शरीर से बाहर निकालने में मदद करता है. लिहाजा, अस्थमा की बीमारी से निजात पाने के लिए मरीज शहद का सेवन रोज करें. इसके अलावा, विटामिन ई युक्त जैतून का तेल, मूंगफली, सेब, वनस्पति तेल जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन अस्थमा के उपचार में मददगार है. वहीं, विटामिन बी से भरपूर मेवों, अंकुरित अनाज और फलियों का सेवन छाती की जकड़न, खांसी, सांस लेने में तकलीफ की समस्या को दूर करता है.’
अस्थमा पर नियंत्रण के लिए इन बातों पर भी रखें ध्यान
डॉ. इंदर मोहन चुघ के अनुसार, अस्थमा की बीमारी में बेहतर नियंत्रण होने तक डॉक्टर द्वारा सुझाई गई दवाइयों का सेवन और इनहेलर को प्रयोग समय पर करना चाहिए. उन सभी कारकों से बचना चाहिए, जिनसे अस्थमा के अटैक की आशंका बढ़ जाती है. खानपान पर नियंत्रण रखें और खाना धीरे-धीरे और चबाकर खाएं. गर्म मसाले, लाल मिर्च, अचार, का सेवन न करें या कम मात्रा में करें. नित्य प्राणायाम के साथ योगासन करने से श्वास नलिकाओं की सिकुड़न से काफी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है. उन्होंने बताया कि लाइफ स्टाइल में सही बदलाव और बेहतर खानपान के जरिए अस्थमा की बीमारी पर काफी हद तक नियंत्रण रखा जा सकता है.
अस्थमा की बीमारी के लिए ये सभी कारक हैं जिम्मेदार
डॉ. इंदर मोहन चुघ के अनुसार, अस्थमा की बीमारी के लिए मुख्यतौर पर पर्यावरण प्रदूषण और अनुवांशिक कारक ही जिम्मेदार हैं. लिहाजा, जिन लोगों के माता-पिता अस्थमा के रोग से पीड़ित हैं, उनके बच्चों में इसका खतरा कहीं अधिक बढ़ जाता है. सर्दी के मौसम में सामान्य व्यक्ति की श्वास नलिकाएं भी मामूली सी सिकुड़ जाती हैं, इसलिए इस दौरान अस्थमा की चपेट में आने की आशंका बढ़ जाती है. इसके अलावा, मौसम में होने वाले बदलावों का भी श्वास नलियों पर प्रभाव पड़ता है, जिसकी वजह से भी यह समस्या हो सकती है. जिन लोगों को धूल, धुआं, पालतू जानवरों और किसी दवाई से एलर्जी हो, उन्हें विशेष सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि ये एलर्जी अस्थमा के ट्रिगर का कार्य करते हैं. गर्म और उमसभरी हवाएं भी अस्थमा के ट्रिगर करने का कार्य करती हैं.
मानसिक तनाव भी बन सकता है अस्थमा की वजह
डॉ. इंदर मोहन चुघ बताते हैं कि मानसिक तनाव भी अप्रत्यक्ष रूप से अस्थमा का एक कारण हो सकता है. उन्होंने बताया कि लगातार मानसिक तनाव से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और अस्थमा की चपेट में आने की आशंका बढ़ जाती है. यहां आपको बता दें कि अस्थमा मुख्यरूप से एलर्जी से संबंधित बीमारी है. यह सर्दियों के साथ-साथ गर्मियां समान रूप से प्रभाव डालती हैं. इसके अलावा, कई तरह के कणों के संपर्क में आने से भी अस्थमा हो सकता है. ऐसे में, अस्थमा रोगियों को सलाह दी जाती है कि वे मौसम की परवाह किए बिना सावधानी से देखभाल करें. ऐसी जगह से परहेज करें, जहां पर धूल या छोटे-छोटे कण मौजूद हैं.
बच्चों को तेजी से चपेट में ले रहा है अस्थमा
डॉ. इंदर मोहन चुघ के अनुसार, विश्व स्तर पर यह अनुमान लगाया गया है कि 35 करोड़ से अधिक लोग दमा से पीड़ित हैं, जिनमें से भारत में सभी आयु वर्ग के कम से कम 3 करोड़ रोगी हैं. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, लगभग 15% (45 लाख) अस्थमा रोगी 5 से 11 वर्ष की आयु वर्ग में आते हैं. उन्होंने बताया कि हाल में सामने आ रहे ट्रेंड के अनुसार, सांस फूलने की प्रमुख शिकायतों के साथ अस्थमा के रोगियों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. देखा गया है कि अस्थमा से पीड़ित कम से कम 60% रोगियों को सीओपीडी की जरूरत पड़ती है. वहीं, अस्थमा के शेष 40% मरीज़ों में व्हीज़िंग, उच्च रक्तचाप आदि की शिकायत देखी जाती है. अस्थमा की बीमारी को बढ़ाने में पराली और वाहनों का धुआं व्यापक असर डाल रहा है
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