भिवाड़ी। हार्ट अटैक व कैंसर के बाद ब्रेन स्ट्रोक के मामले भारत मे चिंताजनक ढंग से बढ़ रहे हैं। बड़े- बुजुर्ग ही नहीं, अब युवा भी इसके निशाने पर हैं। ऐसे में जानकारी का अभाव हालत को और गंभीर बना देता है। स्ट्रोक के 70 से 80 फीसदी मामले इ इलाज से ठीक हो सकते हैं। विज्ञान की प्रगति से प्राप्त नई तकनीक के माध्यम से इलाज कर इसको रोका जा सकता है। मरीज को स्ट्रोक के 4 से 5 घंटे भीतर अगर इलाज मिल जाय तो उसे न केवल बचाया जा सकता है, बल्कि वह पहले की तरह पूरी तरह स्वस्थ्य भी हो सकता है । इस मामले में लोगों में जागरूकता बढ़ाने की काफी जरूरत है। हाल के दिनों में भारत में ब्रेन स्ट्रोक के मामलों में वृद्धि होने से यह बीमारी भारत में मृत्यु दर का दूसरा प्रमुख कारण बन गई है, इसके अलावा यह बीमारी लंबे समय तक विकलांगता का कारण भी बन जाती है। इससे निपटने के लिए शुरूआती लक्षणों और समय पर उपचार को लेकर जागरूकता काफी महत्वपूर्ण है।
ब्रेन स्ट्रोक के मामलों में समय की भूमिका के बारे में बोलते हुए फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम के प्रिंसिपल डायरेक्टर (न्यूरोलॉजी) डॉ. प्रवीण गुप्ता ने कहा कि धूम्रपान, शराब का अधिक सेवन, खराब नींद और खराब जीवन शैली के अलावा कम शारीरिक गतिविधि से ब्रेन स्ट्रोक से पीड़ित लोगों के आयु वर्ग में अचानक बदलाव आया है। स्ट्रोक के वक्त, समय एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि तमाम रिपोर्टों से पता चलता है कि एक अगर समय पर ईलाज नहीं मिले तो रोगी हर मिनट लाखों मस्तिष्क कोशिकाओं को खो देता है । मुख्य धमनी में रुकावट के 24 घंटों के भीतर अगर मरीज अस्पताल पहुँच जाए, तब भी मस्तिष्क को बचाया जा सकता है। समय पर ईलाज मिलने पर थक्के हटाकर, मस्तिष्क में रक्त की आपूर्ति को बहाल किया जा सकता है।
मस्तिष्क को रक्त की आपूर्ति करने वाली धमनियों में रुकावट के कारण इस्कीमिक स्ट्रोक और रक्त वाहिकाओं के टूटने के कारण ब्रेन हैमरेज हाल के दिनों में स्ट्रोक के दो अधिक सामान्य रूप बन गए हैं। स्ट्रोक के उपचार के पारंपरिक तरीकों में रक्त का पतला होना और फिजियोथेरेपी शामिल है। लेकिन इससे मरीज को सही उपचार नहीं मिलता है, वह आजीवन इसकी निर्भरता पर चलता है।
डॉ. गुप्ता के अनुसार स्ट्रोक के गंभीर मामलों में रक्त के प्रवाह को सामान्य बनाने के लिए सर्जरी के साथ इलाज किया जाता है। यदि रक्त बहुत पतला है, सूजन, दौरे, या फिर टूटी हुई धमनी को ठीक करने दवाओं से ईलाज किया जाता है। रोगी केंद्रित उपचार प्रदान करने के लिए एंटीप्लेटलेट स्टैटिन, एंटी-कोगुलेशन से रक्तचाप और शुगर को नियंत्रित किया जाता है। अत्यधिक गंभीर मामलों में बोटुलिनम टॉक्सिन इंजेक्शन का उपयोग किया जाता है। फिजियोथेरेपी स्ट्रोक पुनर्वास की आधारशिला बनाती है। यहां तक कि अगर किसी मरीज ने समय पर इलाज नहीं किया है, तो दवाएं कठोरता को कम करने, व्यवहार में सुधार करने, दौरे को रोकने और मस्तिष्क समन्वय में सुधार करने में मदद कर सकती हैं। कई मामलों में, सीटी स्कैन और एमआरआई सहित ब्रेन इमेजिंग डायग्नोस्टिक परीक्षणों के माध्यम से जल्दी पता लगाने से स्ट्रोक की घटना को रोकने में मदद मिल सकती है ।
साधारण जीवनशैली में बदलाव जैसे कि चीनी के सेवन को नियंत्रित करना, रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल, होमोसिस्टीन पर नियमित व्यायाम के साथ नियंत्रण रखने सहित निवारक तरीकों को अपनाने से स्ट्रोक के जोखिम को 50 फीसदी तक कम किया जा सकता है। नींद की कमी, मोटापा प्रदूषण, स्लीप एपनिया, धूम्रपान और शराब जैसे अन्य व्यसन स्ट्रोक के कुछ प्रमुख कारण हैं. फल, सब्जियां, कम नमक और कम फैट वाले आहार ब्रेन स्ट्रोक की घटना को रोकने में मदद करते हैं.
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