मेरठ : गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर जीआई ट्रैक्ट यानी पाचन नलिका और पाचन तंत्र समेत पेट, छोटी और बड़ी आंत, लिवर, गॉल ब्लैडर व पैनक्रियाज को प्रभावित करता है. ये कैंसर पेट के अंदर किसी भी अंग में पनप सकता है. ये अल्सर के रूप में पनपता है और अगर इस पर ध्यान न दिया जाए तो बहुत कम वक्त में ही ये पेट के दूसरे अंगों तक भी फैल जाता है.
कैंसर के शुरुआती स्टेज में डायग्नोज होने से मरीज को काफी फायदा मिलता है और वक्त पर इलाज से उनके जीवन की समस्या कम की जा सकती है. लेकिन अगर रोग की पहचान में देर हो जाए तो ये मुश्किलें पैदा कर देता है. गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल के बढ़ते केस का एक बड़ा कारक जागरूकता की कमी भी है क्योंकि इसकी वजह से रोग का समय पर पता नहीं चल पाता है.
हालिया आंकड़े दर्शाते हैं कि विकासशील देशों में कैंसर के केस काफी तेजी से बढ़ रहे हैं. हालांकि, दूसरी तरफ कैंसर के इलाज के लिए नए-नए व एडवांस तरीके भी आ गए हैं. लेकिन दुर्भाग्यवश आम जनता में इस तरह की सुविधाओं को लेकर जानकारी का अभाव है जिसके चलते वो इनका फायदा नहीं ले पाते. कई मामलों में कुछ भ्रम भी लोगों को रहते हैं और वो इलाज के पारंपरिक तरीकों पर ही भरोसा जताते हैं.
ग्रेटर नोएडा के यथार्थ सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल, एचपीबी, मिनिमल इनवेसिव सर्जरी एंड लिवर ट्रांसप्लांट के सीनियर कंसल्टेंट व हेड डॉक्टर नीरज चौधरी ने इस बारे में कहा, ‘’ऐसे रोगों से मृत्यु दर को रोकने में सबसे महत्वपूर्ण ये है कि रोग का समय पर पता लग जाए और जल्दी इलाज करा लिया जाए. दूसरी ओर, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेजी से हो रही प्रगति, मिनिमली इनवेसिव जीआई सर्जरी, लैप्रोस्कोपिक सर्जरी और रोबोटिक सर्जरी जैसे नए ट्रीटमेंट मेथड्स ने कैंसर के इलाज ज्यादा सफल बना दिया है. मिनिमल इनवेसिव जीआई सर्जरी कैंसर मरीजों के लिए काफी लाभदायक साबित हो रही है क्योंकि इसमें खून का नुकसान कम होता है, मरीज की रिकवरी जल्दी हो जाती है और अस्पताल में स्टे भी कम ही रहता है यानी डिस्चार्ज कम वक्त में ही मिल जाता है.’’
ग्लोबाकैन 2020 के डाटा के मुताबिक, उस साल रजिस्टर्ड कैंसर के कुल मामलों में जीआई कैंसर का लगभग 20% हिस्सा था, जिसमें 2,10,438 की मृत्यु दर के साथ 2,55,715 नए मामले थे (कुल कैंसर से संबंधित 24%). जबकि पेट का कैंसर अन्य सभी जीआई कैंसर के बीच मृत्यु दर और बीमारी का प्रमुख कारण बना हुआ है, इसोफेजियल कैंसर के बाद कम से कम 31646 नए मामलों (12.3%) के लिए दोनों लिंगों में कोलोरेक्टल कैंसर को गहराई से देखा गया. आंकड़ों ये भी हैं ओसोफेगल, पेट और कोलोरेक्टल कैंसर की चपेट में सबसे ज्यादा पुरुष आए जिनकी केस की संख्या 1,21,277 थी.
डॉक्टर नीरज चौधरी ने आगे बताया, ‘’नई तकनीक और मिनिमली एक्सेस कैंसर सर्जरी तक आम आदमी की पहुंच है. विशेषज्ञ डॉक्टर नई तकनीक का इस्तेमाल करते हुए कोलोन कैंसर, पेट कैंसर जैसे मामले में ट्यूमर को सफलता के साथ निकाल सकते हैं. मिनिमली इनवेसिव सर्जरी यानी कम चीर-काट से होने वाली सर्जरी का मरीज को पारंपरिक सर्जरी की तुलना में बहुत फायदा मिलता है. मिनिमली इनवेसिव सर्जरी में दाग कम आते हैं, रिकवरी जल्दी होती है, दर्द कम रहता है, अस्पताल में कम रहना पड़ता है और ऑपरेशन के बाद बहुत कम दिक्कतें होती हैं. कोरोना महामारी के बाद से तो रोबोटिक सर्जरी को काफी यूज किया जा रहा है, जिसमें मरीज को जल्दी ही अस्पताल से डिस्चार्ज मिल जाता है और उन्हें कोई पोस्ट सर्जिकल समस्याएं नहीं होती हैं.’’
लोगों को यह समझने की जरूरत है कि ऑन्कोलॉजी के क्षेत्र में काफी तरक्की हो गई है और आज के दौर में कैंसर का इलाज पूरी तरह संभव है. अगर शुरुआती स्टेज में कैंसर डायग्नोज हो जाए तो इससे न सिर्फ जीवन सुरक्षित रहने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं बल्कि मरीज बेहतर जिंदगी भी गुजार पाता है.
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