कमर दर्द क्यों होता है? जानिए कारण व इलाज से लेकर इसके बारे में सबकुछ

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कमर दर्द क्यों होता है? जानिए कारण व इलाज से लेकर इसके बारे में सबकुछ

कमर दर्द क्यों होता है? जानिए कारण व इलाज से लेकर इसके बारे में सबकुछ

मैक्स हॉस्पिटल पटपड़गंज नई दिल्ली में न्यूरो एंड स्पाइन सर्जरी के सीनियर डायरेक्टर डॉक्टर आशीष गुप्ता ने कमर दर्द के कारणों से लेकर उसके इलाज, व मिनिमली इनवेसिव सर्जरी जैसे तमाम अहम पहलुओं पर विस्तार से जानकारी दी. कमर दर्द यानी बैक पेन एक बड़ी समस्या है. करीब 80 फीसदी आबादी को जीवन में कभी न कभी लो-बैक पेन से जूझना पड़ता है. खासकर, नौकरीपेशा लोगों की ये एक बड़ी समस्या है.

-कमर दर्द होने के कारण

-मोच और खिंचाव

-डिस्क प्रोलैप्स

-रेडिकुलोपैथी- ये रीढ़ की हड्डी की चोट के कारण होता है, जिसके चलते दर्द, सुन्नता और पैर या हाथ में सुनसुनी होती है.

-स्पोंडिलोलिस्थीसिस यानी कशेरुकाओं का खिसकना

-रीढ़ की हड्डी की चोट

-स्पाइनल स्टेनोसिस — स्पाइनल कॉलम का संकुचन जो रीढ़ की हड्डी और तंत्रिकाओं पर दबाव डालता है जिससे चलने में दर्द या सुन्नता होती है और समय के साथ पैरों में कमजोरी और संवेदी हानि होती है.

-स्कोलियोसिस यानी रीढ़ की समस्या

-संक्रमण

-ट्यूमर

कॉडा इक्विना सिंड्रोम एक गंभीर बीमारी है और मूत्राशय और आंत्र नियंत्रण के नुकसान का कारण बनती है. स्थायी स्नायविक क्षति हो सकती है।

-गठिया

-ऑस्टियोपोरोसिस- इसमें कशेरुकाओं के दर्दनाक फ्रैक्चर का खतरा रहता है.

डॉक्टर को कब दिखाएं?

-गर्दन और कमर में दर्द हो

-हाथों और पैरों में सुन्नता या झुनझुनी हो

-गिर जाने या चोट लगने के बाद दर्द

-हाथों से पैरों की तरफ दर्द होना

-पेशाब में परेशानी

-हाथों और पैरों में कमजोरी

-हाथों और पैरों में सुन्नता

-बुखार होना

अगर इनमें से कोई भी परेशानी आपको होती है तो न्यूरो स्पेशलिस्ट को जरूर दिखाएं.

बीमारी का पता कैसे करें:

बीमारी की जड़ तक पहुंचने के लिए मरीज की पूरी मेडिकल हिस्ट्री देखी जाती है, पूरी कमर की गहनता के साथ जांच की जाती है, आवश्यक न्यूरोलॉजिक टेस्ट कराए जाते हैं. इसके लिए एक्स-रे, कम्प्यूटराइज्ड टोमोग्राफी (सीटी), मायलोरम्स, एमआरआई कराए जाते हैं. एमआरआई से इंफेक्शन, ट्यूमर, इंफ्लेमेशन, डिस्क हर्निएशन, या नसों पर दबाव का पता लगाया जाता है. इसके अलावा क्रोमाग्राफ, एनसीएस और ईपी का पता लगाने के लिए इलेक्ट्रोडायग्नोस्टिक कराया जाता है. वहीं, इंफेक्शन, फ्रैक्चर और हड्डियों के डिसऑर्डर का पता लगाने के लिए बोन स्कैनिंग की जाती है.

क्या है इलाज:

क्रोनिक बैक पेन से पीड़ित ज्यादातर मरीजों को सर्जरी की आवश्यकता नहीं पड़ती है.

एक्टिविटी: दर्द से राहत के लिए स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करनी चाहिए और फिर रोजमर्रा के कामों में खुद को इंगेज करना चाहिए. एक्यूट लो बैक पेन में स्ट्रेंथनिंग एक्सरसाइज की सलाह नहीं दी जाती है, लेकिन इससे क्रोनिक लो-बैक पेन से जल्दी रिकवरी करने में मदद मिलती है.

दवाई: एक्यूट और क्रोनिक लो-बैक पेन को ठीक करने के लिए बहुत-सी दवाई इस्तेमाल की जाती हैं. लो-बैक पेन को फौरी तौर पर सही करने के लिए एपिड्यूरल स्टेरॉइड इंजेक्शन लगाया जाता है. हालांकि, इंजेक्शन से जो दर्द से राहत मिलती है वो टेंपरेरी होती है.

सर्जरी: जब एक्सरसाइज और दवाई का असर नहीं होता है वैसी स्थिति में सर्जरी के लिए जरिए बैक पेन का इलाज किया जाता है. स्पाइन सर्जरी आमतौर पर ओपन सर्जरी के रूप में की जाती रही है जिसमें लंबा-चौड़ा कट लगता है. हालांकि, बीते कुछ वर्षों में तकनीक विकसित हुई और अब कमर व गर्दन की सर्जरी मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया (की-होल) के तहत की जाने लगी. इस तरह की सर्जरी में तुरंत रिकवरी होती है और मरीज को अस्पताल में कम से कम रुकना पड़ता है.

मिनिमली इनवेसिव सर्जरी कैसे होती है?

इसमें बहुत ही छोटा कट लगाया जाता है और माइक्रोस्पोपिक वीडियो कैमरा लगा हुआ उपकरण अंदर भेजा जाता है जिससे स्क्रीन पर अच्छी तस्वीर मिलती है. इस तरह रीढ़ जैसे संवेदनशील मामलों में सर्जन बहुत ही सटीकता के साथ सफल सर्जरी कर पाते हैं और कोई बड़ा जख्म भी नहीं होता. इस तरह की सर्जरी के कई फायदे होते हैं- 

-शरीर पर महज 2 सेमी तक का कट लगता है
-खून का बहाव बहुत कम होता है
-मसल्स डैमेज होने का खतरा कम रहता है
-इंफेक्शन और सर्जरी के बाद पेन कम होता है
-सर्जरी के बाद तेज रिकवरी होती है
-कम समय में ही नॉर्मल लाइफ हो जाती है
-सर्जरी के बाद दवाओं पर निर्भरता नहीं रहती
-कुछ सर्जरी में सिर्फ लोकल एनीस्थीसिया ही इस्तेमाल किया जाता है, ताकि रिस्क कम रहे.

किन-किन हालात में होती है मिनिमली इनवेसिव सर्जरी? 

-डिस्क प्रोलैप्स (लुंबर और सर्विकल)
-लुंबर और सर्विकल स्पाइनल स्टेनोसिस (स्पाइनल कम्प्रेशन)
-रीढ़ में स्कोलिओसिस
-रीढ़ में इंफेक्शन
-रीढ़ में अस्थिरता
-वर्टेब्रल फ्रैक्चर
-ट्रॉमा
-स्पाइनल ट्यूमर
-डिजनरेटिव डिस्क डिजीस

सर्जरी के विकल्प?

ओस्टियोपोरोसिस के कारण होने वाले कशेरुकाओं के फ्रैक्चर को सही करने के लिए वर्टेब्रोप्लास्टी और काइफोप्लास्टी जैसी मिनिमली इनवेसिव सर्जरी की जाती हैं. वहीं, स्पाइनल लैमिनेक्टॉमी और फोरैमिनोटॉमी तब किया जाता है जब स्पाइनल स्टेनोसिस स्पाइनल कैनाल के संकुचन का कारण बनता है जिससे दर्द, सुन्नता या कमजोरी होती है.
ऐसे मामलों में जहां डिस्क हर्नियेटेड है और तंत्रिका जड़ या रीढ़ की हड्डी पर दबाव डालती है, जिससे तीव्र और स्थायी दर्द हो सकता है, तो उसे
डिस्केक्टॉमी (एंडोस्कोपिक या माइक्रोस्कोपिक) से हटाया जा सकता है.
इसके अलावा स्पाइनल फ्यूजन का उपयोग रीढ़ को मजबूत करने और डिस्क रोग या स्पोंडिलोलिस्थीसिस वाले लोगों में दर्द को रोकने के लिए किया जाता है.

आर्टिफिशियल डिस्क रिप्लेसमेंट- 

इस प्रक्रिया में डिस्क को हटाना और सिंथेटिक डिस्क से इसे बदलना शामिल होता है जो कशेरुक के बीच ऊंचाई और गति को बहाल करने में मदद करता है. वहीं, स्पाइन के इंफेक्शन और ट्यूमर को ठीक करने के लिए माइक्रोस्कोपिक और एंडोस्कोपिक सर्जरी की जाती है. स्पाइनल ट्रॉमा सर्जरी भी एक विकल्प होता है.

अपनी कमर को कैसे स्वस्थ रखें? 


अपनी कमर को स्वस्थ रखने के लिए वॉक करें, स्विमिंग करें, हर रोज करीब 30 मिनट साइक्लिंग करें. इसके अलावा योगा करें. जब खड़े हों या बैठे हों तो झुके नहीं. अच्छे सपोर्ट के साथ कुर्सी पर बैठें और लैपटॉप या कम्प्यूटर को सही हाइट पर रखें. आरामदायक और कम हील्स वाले जूते पहनें. घुटनों को ऊपर करके एक तरफ करवट लेकर सोएं. हमेशा सख्त बिस्तर पर सोएं. ज्यादा भारी चीजें न उठाएं. जब वजन उठाएं तो ट्विस्ट न करें. ज्यादा वजन बढ़ाने से बचें और प्रॉपर डाइट लें जिसमें कैल्शियम, फास्फोरस, विटामिन डी शामिल रहे. इनसे नई हड्डियों की ग्रोथ होती है. धूम्रपान और शराब का सेवन न करें.