पीडिएट्रिक यूरोलोजी की समस्या कैसे होती हैं और क्या है इसका सबसे बेहतर इलाज, एक्सपर्ट से जानिए सबकुछ

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पीडिएट्रिक यूरोलोजी की समस्या कैसे होती हैं और क्या है इसका सबसे बेहतर इलाज, एक्सपर्ट से जानिए सबकुछ

पीडिएट्रिक यूरोलोजी की समस्या कैसे होती हैं और क्या है इसका सबसे बेहतर इलाज, एक्सपर्ट से जानिए सबकुछ

रोहतक : बीएलके मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल नई दिल्ली में पीडिएट्रिक सर्जरी (बाल रोग सर्जरी) विभाग के सीनियर डायरेक्टर डॉक्टर प्रशांत जैन ने पीडिएट्रिक यूरोलोजी के बारे में विस्तार से जानकारी दी.

बच्चे आमतौर पर जेनिटो-मूत्र संबंधी समस्याओं से पीड़ित होते हैं. नवजात यानी छोटे बच्चे इस परेशानी को जाहिर नहीं कर पाते हैं. ऐसी कंडीशन में एक प्रशिक्षित और अनुभवी पीडिएट्रिक यूरोलॉजिस्ट की आवश्यकता पड़ती है. पीडिएट्रिक यूरोलॉजिस्ट वो डॉक्टर होते हैं जो बच्चों की जेनिटो-मूत्र संबंधी परेशानियों का पता लगाते हैं और फिर उनका इलाज करते हैं.

जेनिटो-यूरिनरी सिस्टम में यूरेटर, किडनी, ब्लैडर और रिप्रोडक्टिव अंग शामिल होते हैं. एक अनुमान से पता चलता है कि जितने बच्चों को भी सर्जरी की जरूरत पड़ती है उनमें से 50 फीसदी जेनिटो-यूरिनरी सिस्टम के मामले होते हैं. बच्चों में ये समस्या जन्मजात भी हो सकती है या फिर बाद में पनपती है. पीडिएट्रिक यूरोलॉजिस्ट इससे जुड़े सामान्य व गंभीर से गंभीर मामलों को हैंडल करने में माहिर होते हैं.

बड़ों से कैसे अलग है बच्चों की ये समस्या?
पीडिएट्रिक यूरोलोजी और एडल्ट यूरोलॉजी में काफी अंतर है. दोनों के लक्षण भी अलग होते हैं. यूरोलॉजी से जुड़े ज्यादातर मामले जन्मजात होते हैं और उनके इलाज में एक अलग ही दृष्टिकोण की जरूरत पड़ती है. इनमें से अधिकतर समस्याओं का समाधान बारीकी से ऑब्जर्व करके किया जा सकता है और इसमें किसी तरह की सर्जरी की जरूरत नहीं होती है. पीडिएट्रिक सर्जनों के पास आजकल बेहद उन्नत उपकरण हैं जिससे वो बहुत ही सटीक तरह से रोग का पता लगा लेते हैं और बिना सर्जरी ही इलाज कर देते हैं. मिनिमली इनवेसिव सर्जरी का भी चुनौतियों को कम करने में काफी लाभदायक है.

बच्चों में यूरोलॉजी से जुड़ी क्या समस्याएं होती हैं?

यूरोजेनिटल समस्या: हार्निया, अविकसित टेस्टिस और हाइपोस्पेडिया.
किडनी समस्या: हाइड्रोनिफ्रोसिस, पेल्विक यूरेट्रिक जंक्शन ऑब्सट्रक्शन, वेसिकोर्टरिक रिफ्लक्स.
ब्लैडर और यूरेथ्रल समस्या: ब्लैडर एस्ट्रोफी, ब्लैडर डायवर्टिकुला, न्यूरोजेनिक ब्लैडर, पोस्टीरियर यूरेथ्रल वाल्व.

क्या होते हैं सामान्य लक्षण?

पीडिएट्रिक डिसऑर्डर के लक्षण जेनिटो-यूरिनरी डिसऑर्डर पर आधारित होते हैं. लेकिन कुछ सामान्य लक्षण भी होते हैं.
-दर्द के साथ पेशाब होना
-बुखार
-बार-बार यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन होना
-पेशाब में मवाद
-पेशाब में खून का आना
-पतला पेशाब आना
-पेट में दर्द
-टेस्टिस में सूजन
-ज्यादा पेशाब आना

पीडिएट्रिक यूरोलोजी में मिनिमली इनवेसिव सर्जरी की भूमिका

लेप्रोस्कोपिक सर्जरी: लेप्रोस्कोपिक यूरोलॉजी, जिसे आमतौर पर की-होल सर्जरी के रूप में भी जाना जाता है, एक मिनिमली इनवेसिव सर्जरी है. पीडिएट्रिक यूरोलोजी के क्षेत्र में इसे काफी अच्छी तरह से विकसित किया गया है. जिन मरीजों की ये सर्जरी होती है उन्हें ऑपरेशन के बाद दर्द कम रहता है, अस्पताल में कम वक्त भर्ती रहना पड़ता है और बेहतर कॉस्मेटिक बेनिफिट मिलते हैं.

रोबोटिक असिस्टेड लेप्रोस्कोपिक सर्जरी: पिछले कुछ वर्षों में पीडिएट्रिक रोबोटिक सर्जरी ने बच्चों की सर्जरी के क्षेत्र में क्रांति ला दी है. स्टैंडर्ड लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के सभी अतिरिक्त लाभों के साथ, रोबोटिक असिस्टेड प्रक्रिया, लेप्रोस्कोपिक सर्जरी की सीमाओं को दूर करती है. रोबोट की तकनीक 10 गुना मैग्नीफिकेशन, 3 डी विज़ुअलाइज़ेशन और 360 डिग्री रोटेशन प्रदान करती है. इसकी मदद से रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी भी आसानी से हो जाती है. यहां तक कि इस तकनीक से चुनौतीपूर्ण रिकंस्ट्रक्टिव पीडिएट्रिक यूरोलॉजिकल सर्जरी भी अच्छे रिजल्ट के साथ कर ली जाती है. सर्जरी से जुड़ी समस्याएं भी बहुत कम होती हैं.

एंड्रोलॉजी: यह एक ऐसी तकनीक है जिसमें यूरिनरी ट्रैक्ट (मूत्र पथ) में देखने और सर्जरी करने के लिए छोटे इंटरनल एंडोस्कोप और इंस्ट्रूमेंटेशन का उपयोग किया जाता है. इसकी मदद से जेनिटो-यूरिनरी ट्रैक्ट, यूरिनरी ब्लैडर और यूरेथ्रा की समस्याओं का डायग्नोज और इलाज किया जाता है.