स्ट्रोक के इलाज में नए-नए और एडवांस तरीके आने के बावजूद इससे होने वाली मौतों का प्रतिशत बढ़ ही रहा है। साथ ही स्ट्रोक के केस भी काफी सामने आ रहे हैं। इसकी एक सबसे बड़ी वजह ये रहती है कि मरीज वक्त पर स्ट्रोक सेंटर नहीं पहुंच पाता। इसी को ध्यान में रखते हुए गुरुग्राम के आर्टेमिस-अग्रिम इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंसेज़ ने 'ड्रिप एंड शिप' प्रोग्राम की शुरुआत की है। इसके तहत किसी भी शहर में छोटे-छोटे सेंटर्स के साथ मिलकर स्ट्रोक के पेशंट को इलाज की व्यवस्था की गई है। इसके तहत अगर किसी को स्ट्रोक आता है तो मरीज को इमरजेंसी में आसपास के सेंटर पर फर्स्ट एड दिया जाता है, जिसके बाद उसे एडवांस स्ट्रोक मैनेजमेंट सेंटर यानी आर्टेमिस रेफर कर दिया जाएगा। बता दें कि स्ट्रोक पड़ने पर ब्रेन में होने वाली ब्लड की सप्लाई प्रभावित होती है और इसमें क्लॉटिंग हटानी पड़ती है।
आर्टेमिस-अग्रिम इंस्टिट्यूट ने कई शहरों में इस तरह के सेंटर्स का एक नेटवर्क डवलप किया है। इन स्ट्रोक सेंटर्स को 'ड्रिप एंड शिप' नाम दिया गया है। ये सभी सेंटर्स स्ट्रोक के मरीजों को एक-दूसरे की मदद से इलाज देंगे। जरूरत पड़ने पर आर्टेमिस-अग्रिम के विशेषज्ञों की टीम से संपर्क करेंगे। इन सेंटर्स( ड्रिप) पर मरीज को क्लॉट हटाने वाला इंजेक्शन दिया जाएगा, फिर मरीज को मेन स्ट्रोक सेंटर रेफर (शिप) कर दिया जाएगा। इस तरह स्ट्रोक पड़ने पर मरीज को ऑन टाइम ट्रीटमेंट मिल सकेगा। इसके लिए ये भी जरूरी है कि स्ट्रोक के पड़ने के तुरंत बाद यानी गोल्डन आवर्स में ही मरीज स्ट्रोक सेंटर पहुंच जाए ताकि उसे इलाज दिया जा सके।
आर्टेमिस-अग्रिम इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंसेज़ में स्ट्रोक यूनिट के को-डायरेक्टर और न्यूरोइन्वेंशन के चीफ डॉक्टर विपुल गुप्ता ने बताया, ''ड्रिप एंड शिप फॉर्मूला हमारे देश में काफी कारगर है, क्योंकि यहां इलाज के लिए एडवांस फैसिलिटी हमेशा उपलब्ध नहीं रहती हैं। लेकिन लोकल सेंटर्स और बड़े अस्पतालों के समन्वय से मरीजों को बेस्ट पॉसिबल इलाज मिल रहा है। आर्टेमिस अस्पताल की स्ट्रोक यूनिट में न्यूरोइन्टरवेंशन टीम हर वक्त मौजूद रहती है। तुरंत इलाज के लिए, इमरजेंसी फिजिशियंस की टीम, फिजिशियंस, न्यूरोइन्टरवेंशन और न्यूरोक्रिटिकल केयर टीम रहती है जो आपसी तालमेल के साथ स्ट्रोक पड़ने के बाद फर्स्ट गोल्डन आवर्स में इलाज करती है। ''
'बात जब स्ट्रोक की आती है तो हर मिनट बहुत कीमती होता है। हर मिनट 2 मिलियन सेल्स मरते हैं। यानी स्ट्रोक पड़ने पर मरीज हर मिनट बुरी स्थिति में जा रहा होता है। आजकल हमारे पास इलाज के मॉडर्न तरीके हैं, जिनकी मदद से अर्ली ट्रीटमेंट देकर स्ट्रोक को बढ़ने से रोका जा सकता है, यहां तक कि खत्म भी किया जा सकता है। सबसे महत्वपूर्ण ये है कि स्ट्रोक के बाद गोल्डन ऑवर्स में ही मरीज को इलाज मिल जाए। एक्यूट स्ट्रोक के इलाज के लिए मैकेनिकल थ्रोमबैक्टोमी सबसे सफल तरीका बन गया है। इस प्रक्रिया में बड़ी नसों के ब्लॉकेज भी खत्म कर दिए जाते हैं और मरीज की बहुत अच्छी रिकवरी होती है।
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