कैंसर के कई प्रकार होते हैं. एक होता है सारकोमा (Sarcoma) कैंसर. ये एक दुर्लभ कैंसर होता है जो हड्डियों और शरीर के सॉफ्ट टिशूज जैसे- नसें, मांसपेशियां, चर्बी, ब्लड वेसल्स और जोड़ों से पनपता है. सारकोमा के केस बहुत ही कम सामने आते हैं. एडल्ट कैंसर के सभी मामलों में करीब एक फीसदी सारकोमा कैंसर और चाइल्डहुड कैंसर में इसके करीब 15 फीसदी केस होते हैं. ये कैंसर भले ही कम होता है लेकिन ये बहुत ही घातक होता है और शरीर के अन्य हिस्सों में भी इसका प्रसार होता है. मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल साकेत नई दिल्ली में मस्क्यूलोस्केलेटल ऑन्कोलॉजी एंड कैंसर केयर के डायरेक्टर व हेड डॉक्टर अक्षय तिवारी ने इस विषय में विस्तार से जानकारी दी.
सारकोमा के प्रकार
सॉफ्ट टिशू सारकोमा: ये शरीर के सॉफ्ट टिशू में पनपनता है और फिर अन्य हिस्सों जैसे मसल्स, नसें, ब्लड वेसल्स, फैटी टिशूज और टेंडन में भी फैल सकता है.
बोन सारकोमा: घुटने के आसपास के एरिया में ये सारकोमा कैंसर होता है.
सारकोमा के लक्षण
सारकोमा के लक्षण ट्यूमर की लोकेशन और साइज पर निर्भर करते हैं. इसमें कॉमन संकेत और लक्षण हैं-
-गांठ या मास जो दर्दनाक हो सकता है या नहीं भी हो सकता है
-किसी हिस्से में दर्द या सॉफ्टनेस
-सीमित मोशन (विशेषकर जोड़ों और मसल्स पर ट्यूमर के असर के मामले में)
-थकान और बेवजह वजन घटना
-ट्यूमर के आसपास के बॉडी पार्ट्स पर दबाव जिससे नसों में दर्द या सांस लेने में कठिनाई हो सकती है
सारकोमा होने के कारण
सारकोमा किस कारण होता है, इसकी असल वजह का तो पता नहीं चल पाता है. हालांकि, कुछ ऐसे रिस्क फैक्टर्स हैं जिनसे इसकी पहचान की जा सकती है.
जेनेटिक फैक्टर्स: ली-फ्रॉमेनी सिंड्रोम और हेरिडेटरी रेटिनोब्लास्टोमा जैसी रेयर जेनेटिक परिस्थितियों में सारकोमा पनपने का डर बढ़ जाता है.
रेडिएशन का संपर्क: रेडिएशन की हाई डोज के संपर्क में आने से इसका खतरा रहता है. जैसे कैंसर के इलाज में रेडिएशन थेरेपी दी जाती है, उसमें सारकोमा पनपने का डर रहता है.
पर्यावरणीय कारण: विनाइल क्लोराइड और आर्सेनिक जैसे कुछ केमिकल भी सारकोमा को जन्म देने का काम करते हैं.
उम्र: सारकोमा किसी उम्र में हो सकता है लेकिन इसके कुछ अन्य रूप कुछ स्पेसिफिक एज ग्रुप के लोगों में ही पनपते हैं.( जैसे बच्चों में इविंग सारकोमा)
सारकोमा का डायग्नोसिस
सारकोमा का पता लगाने के लिए कई तरह की प्रकियाएं इस्तेमाल की जाती हैं.
बायोप्सी: जहां ट्यूमर होने की आशंका रहती है उस हिस्से से टिशू लिया जाता है और माइक्रोस्कोप की मदद से कैंसरस सेल्स का पता लगाया जाता है.
इमेजिंग स्टडीज: एक्स-रे, एमआरआई, सीटी स्कैन और पीईटी स्कैन के जरिए भी ट्यूमर का पता लगाया जाता है.
जेनेटिक टेस्टिंग: सारकोमा से जुड़ी कुछ विशिष्ट जेनेटिक असामान्यताओं का पता लगाने के लिए ये टेस्टिंग की जाती है.
सारकोमा का इलाज
सारकोमा का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि वो किस स्टेज में है और किस हिस्से में है. इसकी स्टेज का पता कैंसर के साइज और ग्रेड से लगता है. इसके कुछ इलाज हैं.
सर्जरी: सारकोमा को ठीक करने के लिए ये सबसे पहला इलाज है. सर्जन इस तरह से सर्जरी की कोशिश करते हैं कि ये फिर से न पनपे.
रेडिएशन थेरेपी: इसमें हाई एनर्जी एक्स-रे और रेडिएशन के दूसरे तरीकों का इस्तेमाल कैंसर सेल्स को मारने के लिए किया जाता है. इसका इस्तेमाल सर्जरी से पहले ट्यूमर को सिकोड़ने के लिए भी किया जा सकता है और सर्जरी के बाद बचे हुए कैंसर सेल्स को खत्म करने के लिए भी किया जा सकता है.
कीमोथेरेपी: कैंसर सेल्स को खत्म करने या उनकी ग्रोथ को रोकने के लिए एंटी-कैंसर कैंसर ड्रग्स देकर कीमोथेरेपी की जाती है. जो सारकोमा सिर्फ सर्जरी से खत्म नहीं हो पाते और उनके अन्य अंगों तक फैलने का खतरा रहता है, उनमें कीमोथेरेपी की जाती है.
टारगेटेड थेरेपी: सारकोमा के कुछ मामलों में स्पेसिफिक जेनेटिक असामान्यताएं होती हैं और ऐसे मामलों में ट्यूमर की ग्रोथ को रोकने के लिए टारगेटेड ड्रग्स थेरेपी दी जाती है.
इम्यूनोथेरेपी: सारकोमा उपचार के शुरुआती चरणों में, इम्यूनोथेरेपी का उद्देश्य मरीज के इम्यून सिस्टम को कैंसर कोशिकाओं को अच्छे ढंग से पहचानने और उनके खिलाफ अटैक करने के लिए तैयार करना होता है.
सारकोमा से बचाव
क्योंकि सारकोमा होने के असल कारण का पता नहीं चल पाता है इसलिए इससे बचाव के निश्चित तरीके बता पाना भी चुनौतीपूर्ण है. लेकिन कुछ खास रणनीति अपनाकर इसके रिस्क को कम किया जा सकता है.
नुकसानदायक केमिकल से दूरी बनाएं: जो भी ज्ञात कार्सिनोजेन्स और खतरनाक केमिकल्स हैं उनसे दूरी बनाए रखें.
जेनेटिक रिस्क की मॉनिटरिंग: अगर परिवार में किसी को सारकोमा है या उससे संबंधित कोई जेनेटिक समस्या है तो जेनेटिक काउंसलिंग और टेस्टिंग कराएं.
रेडिएशन सेफ्टी: अगर आपको किसी अन्य बीमारी के लिए रेडिएशन थेरेपी की आवश्यकता रहती है तो अपने डॉक्टर से उसके प्रभाव और दुष्प्रभावों के बारे में जरूर चर्चा कर लें.
रेगुलर हेल्थ चेकअप: अगर रोग का समय पर पता चल जाए और उसका इलाज हो जाए तो बेहतर रिजल्ट पाए जा सकते हैं. इसलिए जरूरी है कि रेगुलर हेल्थ चेकअप कराते रहें ताकि असामान्य लक्षणों का पता लग जाए.
-कोई गांठ या सूजन अगर 5 सेमी से ज्यादा साइज की हो तो उसकी अच्छे से जांच कराएं.
- एक किशोर या बच्चे में हड्डी का दर्द अगर सामान्य इलाज से ठीक न हो रहा हो तो आगे की जांच करानी चाहिए.
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