अलीगढ़: जब भी डॉक्टर किसी मरीज का इलाज करते हैं तो वो बीमारी ठीक हो जाने के बाद कुछ सावधानियां बरतने को कहते हैं. सर्जरी के मामले में तो ये और भी ज्यादा अहम है. इसी तरह के एक मामले (76 साल के मरीज की ट्रीटमेंट यात्रा) का जिक्र करते हुए फोर्टिस हॉस्पिटल गुरुग्राम के डॉक्टरों ने मरीज के रिकवरी फेज में मेडिकल केयर की अहम भूमिका के बारे में जानकारी दी. डॉक्टरों ने बताया कि कैसे इस मरीज के जीवन में बदलाव आ गया.
यह प्रेरणादायक जर्नी न केवल अस्पताल की एडवांस ट्रीटमेंट क्षमताओं के बारे में बताती है, बल्कि इससे ये भी पता चलता है कि इलाज के बाद अच्छा रिजल्ट पाने के लिए रिहैबिलिटेशन कितना महत्वपूर्ण है.
ये मामला अलीगढ़ का है. 76 वर्षीय शख्स का रोड एक्सीडेंट हो गया. वो स्कूटर से टकरा गए थे और इस हादसे में उनके पैर में बहुत ही कॉम्प्लेक्स फ्रैक्चर हो गया. इस बुजुर्ग मरीज को पहले से ही सांस की दिक्कतें थीं, और इस कंडीशन में अलीगढ़ के डॉक्टरों के लिए इस ऑर्थोपेडिक केस को देखना चुनौतीपूर्ण था. इस चैलेंजिंग कंडीशन को देखते हुए मरीज के बेटे ने फोर्टिस अस्पताल गुरुग्राम लाने का फैसला किया ताकि उन्हें अच्छी केयर मिल सके.
डॉक्टर उद्गीथ धीर, फोर्टिस अस्पताल गुरुग्राम में सीटीवीएस (एडल्ट एंड पीडिएट्रिक) के हेड व डायरेक्टर हैं. उन्होंने इस बारे में बताया, ”जब मरीज यहां आए तो उनके पैर के फ्रैक्चर को देखते हुए सर्जरी करने का फैसला किया गया. लेकिन उन्हें अचानक सीने में दर्द हुआ और माइनर हार्ट अटैक के लक्षण भी नजर आए. मेडिकल टीम ने तुरंत इस पर रिएक्ट किया और मरीज को एंजियोग्राफी के लिए कैथ लैब ले जाया गया. एंजियोग्राफी में पता चला कि उनकी लगभग सभी कोरोनरी धमनियों में ब्लॉकेज है जो 90-95 फीसदी है.
मरीज के लगातार टेस्ट किए जा रहे थे जिसमें नई-नई दिक्कतों का पता चल रहा था. बाकी जांच पड़ताल में पता चला कि उनके फेफड़ों में समस्या है और पैर में फ्रैक्चर के चलते भी कुछ इशू हुए हैं. इन सब मुश्किलों के बावजूद डॉक्टरों ने हार्ट की समस्या के लिए बायपास सर्जरी का प्लान किया. हार्ट सर्जरी सफल रही लेकिन अब उनके फेफड़ों व पैर की समस्याओं को ठीक करना था.
मरीज के पैर में जो फ्रैक्चर था, उसका इलाज किया गया और बहुत ही गहनता से उनकी मॉनिटरिंग की गई. रिकवरी फेज के दौरान चुनौतियां भी सामने आईं. बायपास सर्जरी के 14वें दिन मरीज को बहुत ही गंभीर तरीके से सांस की समस्या होने लगी और उनका ब्लड प्रेशर गिरने लगा. डॉक्टर उद्गीथ धीर द्वारा गाइडेड टीम ने इस मामले को ऑर्थोपेडिक सर्जरी के बाद होने वाली पल्मोनरी एम्बोलिज्म समझा. टीम ने इस पर तुरंत निर्णय लिया और लाइफ सेविंग एक्स्ट्राकोर्पोरियल मेम्ब्रेन ऑक्सीजनेशन (ईसीएमओ) दिया.
डॉक्टर धीर ने खुद व्यक्तिगत रूप से ईसीएमओ प्लेसमेंट की देखरेख की, जिसने तीन दिन नाजुक पीरियड के दौरान मरीज की स्थिति को स्थिर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस मुश्किल फेज में भी मरीज रिकवरी करता रहा. ईसीएमओ सपोर्ट को व्यवस्थित रूप से कम कर दिया गया, जिसके बाद फिर डिवाइस को हटा दिया गया.
ठोस प्रयासों और विशेषज्ञ देखभाल की मदद से मरीज ने उल्लेखनीय रिकवरी की. यह मामला दिखाता है कि केयर और रिहैबिलिटेशन कितना अहम है. ये मरीज जब अस्पताल पहुंचे थे तो उनकी हड्डी फ्रैक्चर का मामला था, लेकिन फिर हार्ट तक बात पहुंच गई और उन्हें दिल का दौरा पड़ गया. लेकिन डॉक्टरों ने सजगता दिखाई. इस मामले से पता चलता है कि मरीज की नियमित देखभाल और कंडीशन का आकलन करते रहने से अन्य जोखिमों को पता चल सकता है जिससे इलाज करने में आसानी होती है.
डॉक्टर धीर ने कहा, ”ये मामला क्रिटिकल केयर और रिकवरी के दौरान रिहैबिलिटेशन की अहमियत को दर्शाता है. हमारी टीम ने सिचुएशन के हिसाब से तुरंत एक्शन लिए, अच्छी तरह से समय पर इलाज दिया और सहयोगी प्रयास ने मरीज के जीवन को बचाने में तो महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ही, साथ ही रिकवरी फेज में ये अहम रही. यह केस दिखाता है कि मुश्किल मेडिकल कंडीशन में कैसे चुनौतियों से पार पाया जाता है.”
इलाज के मॉडर्न तरीकों, विशेषज्ञों और मेडिकल टीम की सहयोग की भावना की बदौलत आज 76 वर्षीय मरीज एक मुश्किल वक्त से बाहर आ गया है.
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