जोधपुर: क्या आपने कभी सोचा है कि स्तन कैंसर की गांठ का पता लगाने में कैसा महसूस होता है? शायद आपने इससे जुड़ी कहानियां सुनी होंगी या लेख पढ़े होंगे लेकिन फिर भी खुद को इस प्रक्रिया का हिस्सा बनाने की उत्सुकता रहती है. खैर, अब ये आश्चर्य की नहीं है. इस ब्लॉग पोस्ट में, डॉक्टर सज्जन राजपुरोहित आपको स्तन कैंसर की गांठ से जुड़ी तमाम चीजें विस्तार से बता रहे हैं. डॉक्टर सज्जन राजपुरोहित बीएलके-मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल (नई दिल्ली) में मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के सीनियर डायरेक्टर हैं.
स्तन कैंसर की गांठ से जुड़े रहस्य जानने और समझने के लिए आप सब इस यात्रा में हमारे साथ जुड़ें. चाहे आप अपनी निजी जानकारी के लिए इसके बारे में जानना चाह रहे हों या फिर जिज्ञासावश इसे समझना चाहते हों, इसके बारे में सबकुछ जानने के लिए तैयार हो जाएं. आइए जानें कि स्तन कैंसर की गांठ वास्तव में कैसी होती है और इसकी शुरुआती पहचान से लेकर बचाव तक के बारे में जानें.
ब्रेस्ट कैंसर का पता लगाने के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट और डायग्नोस्टिक टेस्ट कराए जाते हैं. इन टेस्ट के जरिए ब्रेस्ट कैंसर के जल्दी डायग्नोज होने और कैंसर की मॉनिटरिंग में मदद मिलती है. इसके लिए कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं जिनके बारे में हम आगे बता रहे हैं.
1- मैमोग्राम: इसमें स्तन का एक्स-रे किया जाता है. स्तन कैंसर का पता लगाने के लिए ये बहुत ही आम टेस्ट है. इससे कैंसर की छोटी गांठ का भी पता लग जाता है और कैंसर के शुरुआती लक्षणों का पता लग जाता है.
2- क्लिनिकल ब्रेस्ट एग्जाम (सीबीई): इसमें मेडिकल प्रोफेशनल द्वारा स्तन और उसके आसपास के हिस्से का फिजिकल टेस्ट किया जाता है. इसमें गांठ का पता लगाया जाता है, स्तन के साइज या शेप में किसी तरह का बदलाव देखा जाता है और फिर कोई असामान्यता नजर आए तो वो देखा जाता है.
3- ब्रेस्ट सेल्फ-एग्जाम (बीएसई): ये टेस्ट थोड़ा विवाद का हिस्सा भी रहता है. दरअसल, इसमें महिलाओं को खुद ही अपने स्तन में किसी तरह के बदलाव या असामान्यता देखने की सलाह दी जाती है. हालांकि, अहम बात ये है कि सिर्फ स्तन के सेल्फ-एग्जाम ही कैंसर का पता लगाने के लिए काफी नहीं होता, लेकिन अंदेशा होने पर स्क्रीनिंग के जरिए कैंसर डायग्नोज किया जा सकता है.
4-स्तन का अल्ट्रासाउंड: इस टेस्ट में साउंड वेव के जरिए ब्रेस्ट टिशू की तस्वीरें क्रिएट की जाती हैं. इससे पता चलता है कि गांठ ठोस है या फिर फ्लूड से भरी है. इसके बाद मैमोग्राफी या फिजिकल एग्जामिनेशन के जरिए आगे की जांच पड़ताल की जाती है.
5- ब्रेस्ट मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरई): स्तन का एमआरआई कराया जाता है. एमआरआई में मजबूत मैग्नेट्स और रेडियो वेव का इस्तेमाल कर स्तन की तस्वीर क्रिएट की जाती है. आमतौर पर जिन मरीजों को ज्यादा रिस्क होता है उनके लिए एमआरआई के साथ मैमोग्राफी की जाती है.
6- बायोप्सी: स्तन कैंसर का सटीक तरह से पता लगाने के लिए बायोप्सी कराई जाती है. इसमें स्तन से सैंपल लेकर लेबोरेटरी में टेस्ट किया जाता है. बायोप्सी के कई प्रकार होते हैं जिसमें नीडल बायोप्सी, कोर बायोप्सी और सर्जिकल बायोप्सी.
7- जेनेटिक टेस्टिंग: जिनके परिवार में स्तन कैंसर या उस तरह के किसी रिस्क फैक्टर की हिस्ट्री रही हो, वहां जेनेटिक टेस्टिंग का उपयोग किया जाता है. इसमें जीन म्यूटेशन जैसे कि BRCA1 और BRCA2 की पहचान की जाती है. इनके कारण स्तन कैंसर और ओवेरियन कैंसर होने का खतरा रहता है.
मरीज की उम्र, मेडिकल हिस्ट्री जैसे रिस्क फैक्टर के हिसाब से डॉक्टर को दिखाना और टेस्ट कराना महत्वपूर्ण होता है. लगातार स्क्रीनिंग और अर्ली डिटेक्शन स्तन कैंसर के पूर्वानुमान और परिणामों में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.
-अल्सर स्तन की गांठ का सबसे आम प्रकार है. ये तरल पदार्थ से भरी थैली होती है जो दूध नलिकाओं या दूध ग्रंथियों में पनप सकते हैं. अल्सर से आमतौर पर किसी तरह का दर्द नहीं होता और न ही इसके अन्य लक्षण होते हैं. हालांकि, इसकी वजह से कभी-कभी स्तन भरा सा या भारी महसूस हो सकता है. अल्सर पुरुषों और महिलाओं दोनों में हो सकते हैं, लेकिन 30 से 50 वर्ष की आयु के बीच की महिलाओं में ये सबसे आम है.
-फाइब्रोएडीनोमा, नॉन कैंसरस ट्यूमर होते हैं जो आमतौर पर युवतियों में पनपते हैं. ये ट्यूमर ग्रंथियों और कनेक्टिव टिशू से बने होते हैं. फाइब्रोएडीनोमा के कारण स्तन गांठदार या हार्ड हो जाती है. हालांकि, आमतौर पर इसके कारण दर्द नहीं होता है. ये आकार में छोटे (एक इंच से कम) से बड़े (कई इंच) तक, किसी भी साइज के हो सकते हैं. फाइब्रोएडीनोमा आमतौर पर धीरे-धीरे बढ़ता है और आमतौर पर जब तक कि वे बहुत बड़े न हो जाएं या असुविधा का कारण न बन जाएं, तब तक इनके इलाज की जरूरत नहीं पड़ती.
-कैंसरस ट्यूमर, स्तन की गांठ का ये रूप सबसे घातक व गंभीर माना जाता है. ये ट्यूमर कैंसरस(घातक) और नॉन-कैंसरस (हल्के) दोनों तरह के हो सकते हैं. नॉन-कैंसरस गांठ से आमतौर पर हेल्थ को ज्यादा खतरा नहीं रहता, लेकिन कैंसरस गांठ का अगर इलाज न किया जाए तो ये स्तन से निकलकर अन्य अंगों तक भी फैल सकती है. कैंसरस ट्यूमर के कारण दर्द हो सकता है, निपल से डिस्चार्ज हो सकता है या साइज में बदलाव हो सकता है.
इसके अलावा सौम्य (नॉन कैंसरस) और घातक गांठ के बीच अंतर समझने के लिए आसपास के टिशू की जांच की जाती है. सौम्य गांठ आमतौर पर सामान्य स्तन टिशू से घिरी होती है, जबकि घातक गांठों के आसपास असामान्य टिशू होते हैं.
अल्सर (सिस्ट): ये तरल पदार्थ से भरे थैली हैं जो आमतौर पर कैंसर नहीं होते हैं. अल्सर दृढ़ हो सकते हैं और दर्दनाक हो सकते हैं, खासकर मासिक धर्म के समय के आसपास ऐसा हो सकता है.
फाइब्रोएडीनोमा: ये सौम्य (नॉन-कैंसरस) ट्यूमर होते हैं जो ग्रंथियों और रेशेदार टिशू से बने होते हैं. फाइब्रोएडीनोमा जल्दी से बढ़ सकता है लेकिन समय के साथ स्थिर हो जाता है और आमतौर पर किसी भी दर्द का कारण नहीं बनता है.
पगेट डिजीज: इस प्रकार का कैंसर निपल में शुरू होता है और इससे निपल की त्वचा पपड़ीदार हो सकती या उस पर सूजन आ सकती है. निपल के क्षेत्र में खुजली या जलन भी हो सकती है. कुछ मामलों में, निपल से खून भी आ जाता है.
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