भारत में हर 10 लाख की आबादी पर करीब 800 क्रोनिक किडनी डिजीज के मामले सामने आते हैं, जबकि एंड स्टेज रीनल डिजीज यानी ईएसआरडी की बात करें तो 10 लाख लोगों पर इनकी संख्या 150-200 है. एंड स्टेज रीनल डिजीज का सबसे बड़ा कारण हाइपरटेंशन और डायबिटीज होता है. डायबिटिक नेफ्रोपैथी ईएसआरडी होने का सबसे बड़ा कारण होता है. डॉक्टर डॉ शफीक अहमद, निदेशक – यूरोलॉजी, एंड्रोलॉजी और रीनल ट्रांसप्लांट, बीएलके-मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, नई दिल्ली ने इस विषय पर विस्तार से जानकारी दी.
ईएसआरडी भारत में एक बड़ा स्वास्थ्य चिंता का विषय है और इसके मामले लगातार बढ़ रहे हैं. इसके इलाज के लिए डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांटेशन सबसे शुरुआती ट्रीटमेंट विकल्प है. जिन मरीजों का किडनी ट्रांसप्लांटेशन नहीं हो पाता, उनके लिए लगातार डायलिसिस बहुत महत्वपूर्ण होता है. किडनी फेल के मरीजों को खाने-पीने का खास ध्यान रखना पड़ता है जैसे नमक, पोटेशियम और फास्फोरस का लिमिटेड सेवन. डायटिशियन उन्हें बता सकते हैं कि वो किस तरह की डाइट लें. इसके अलावा ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर और अन्य पैरामीटर की लगातार मॉनिटरिंग करनी चाहिए. साथ ही बेहतर नतीजे पाने के लिए लगातार अस्पताल में दिखाते रहें और बीमारी का इलाज कराते रहें. रोग की पहचान के बाद उसका इलाज सही से होना बेहद जरूरी है. इसमें मरीजों को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि डॉक्टर ने जो दवाएं और सावधानियां बताई हैं उनका सही से पालन हो.
ईएसआरडी से पीड़ित मरीजों के लिए भावनात्मक तौर पर भी चुनौतियां पेश आ सकती हैं. ऐसे में उन्हें परिवार, दोस्त और सपोर्ट ग्रुप की हेल्प की जरूरत होती है. ईएसआरडी के मरीजों को इंफेक्शन होने का काफी रिस्क रहता है, ऐसे में वो गुड हाइजीन प्रैक्टिस फॉलो करें और वैक्सीन लगवाएं ताकि इंफेक्शन से उनका बचाव हो सके.
किडनी ट्रांसप्लांटेशन होने पर मरीज के किडनी फंक्शन में सुधार होने की संभावना रहती है और उनकी क्वालिटी ऑफ लाइफ भी सुधरती है. इसके लिए अब सर्जरी के विकल्प भी बदल गए हैं. अब ओपन सर्जरी की जगह मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया के साथ किडनी ट्रांसप्लांटेशन किया जाता है.
रोबोटिक किडनी ट्रांसप्लांट के फायदे
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