कानपुर, 2 अप्रैल 2024 : जिस तरह दिल की बीमारी से जुड़े मामले बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए कार्डियक साइंस के क्षेत्र में भी मेडिकल बहुत तरक्की कर रहा है. हार्ट से जुड़ी सर्जरी अब पहले से ज्यादा कहीं सुरक्षित, तेज और मिनिमली इनवेसिव यानी कम से कम आघात पहुंचाने वाली हो गई हैं. कार्डियक सर्जरी के शुरुआती फेज में काफी प्रयास किए गए जो कि सफल रहे और अंतत: वो मरीजों के लिए काफी कारगर साबित हुए. हालांकि, शुरुआती वक्त में मृत्यु दर और बीमारियों के केस काफी ज्यादा थे लेकिन तकनीक में हुई तरक्की की मदद से ये ग्राफ काफी नीचे गया है.
मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल साकेत (नई दिल्ली) में वाइस चेयरमैन व सीटीवीएस के हेड डॉक्टर रजनीश मल्होत्रा के मुताबिक, मौजूदा वक्त में कोरोनरी आर्टरी बायपास ग्राफ्टिंग (सीएबीजी) द विंची रोबोटिक असिस्टेंस के जरिए की जा रही है जिसमें आर्टेरियल ग्राफ्ट्स का इस्तेमाल किया जाता है. ये सर्जरी काफी सुरक्षित, तेज और ज्यादा सटीक होती है, इसमें ब्लड लॉस कम होता है और लगभग दर्द रहित होती है. इस सर्जरी के बाद मरीज की रिकवरी भी तेजी से होती है और कुछ ही दिन बाद अपने काम पर लौट जाते हैं. भारत में लगभग सभी तरह की कोरोनरी सर्जरी बिना हार्ट लंग मशीन के बीटिंग हार्ट पर ही की जा रही हैं, जिससे ये सर्जरी और ज्यादा सुरक्षित हो गई हैं.
टेक्नोलॉजी ने एंजियोप्लास्टी और स्टेंट डालने में काफी मदद की है. एंजियोप्लास्टी और स्टेंटिंग अब ज्यादा सटीक हो गई है. इसमें ऑप्टिकल कंप्यूटराइज्ड टोमोग्राफी (ओसीटी) और इंट्रावैस्कुलर अल्ट्रासाउंड (आईवीयूएस) की मदद से छोटी से छोटी कोरोनरी धमनी को देखा जा सकता है और एकदम सही जगह स्टेंट लगा दिए जाते हैं. रोटा-एब्लेशन, लिथोट्रिप्सी और लेजर की मदद से कैल्सिफाइड कोरोनरी आर्टरीज में भी एंजियोप्लास्टी और स्टेंट लगाना संभव हो गया है. जिन कोरोनरी वेसल्स पर बॉर्डर लाइन जख्म होते हैं उनमें स्टेंट लगाने हैं या नहीं, ये तय करने के लिए अब फ्रैक्शनल फ्लो रिजर्व (एफएफआर) की मदद ली जाती है.
जिन मरीजों के हार्ट में ब्लॉकेज या वाल्व की समस्या होती है, उनके लिए अब मिनिमली इनवेसिव कार्डियक सर्जरी और रोबोट की मदद से की जाने वाली सर्जरी काफी सुलभ मानी जाती है. अब सर्जरी के लिए स्टर्नम को खोलना नहीं पड़ता बल्कि सीने के साइड में एक बहुत ही छोटा कट लगाकर सर्जरी हो जाती है. जिस मरीज की रोबोटिक वाल्व सर्जरी की जाती है वो दो हफ्ते के अंदर ही अपने काम पर लौट जाते हैं. ट्रांस कैथेटर वाल्व थेरेपी जैसे टीएवीआई, मित्रा क्लिप, टी-एमवीआर की मदद से ऐसे बुजुर्ग मरीजों की भी सर्जरी संभव हो गई है जिन्हें अन्य बीमारियां भी रहती हैं और उनकी सर्जरी में रिस्क रहता है.
जिन मरीजों का हार्ट फेल होता है और गंभीर स्थिति रहती है और जिन मरीजों का वेंट्रिकुलर फंक्शन बुरी तरह प्रभावित होता है उनका इलाज अब लेफ्ट वेंट्रिकुलर असिस्टेंस डिवाइस (एलवीएडी) से किया जा सकता है और वो नॉर्मल लाइफ गुजार सकते हैं. ऐसे मरीजों का रोजमर्रा के काम करना और टॉयलेट तक जाना मुश्किल रहता था. हार्ट फेल और खराब वेंट्रिकुलर फंक्शन के गंभीर मरीजों को हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत रहती है लेकिन कई बार डोनर या किसी अन्य कारण से हार्ट उपलब्ध नहीं होता, ऐसी स्थिति में एलवीएडी (LAVD)डिवाइस जीवन रक्षक का काम करती है.
मौजूदा वक्त में हार्ट सर्जरी के लिए अलग-अलग तरह की बहुत तकनीक आ गई हैं. इनमें जीन थेरेपी, 3डी मैपिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक तकनीक शामिल हैं. भविष्य में और भी तरक्की की संभावना है जिससे हार्ट सर्जरी का पूरा दृश्य ही बदल जाएगा. तकनीक के विकास ने मरीज केंद्रित इलाज का विकल्प दिया है, इलाज पहले से ज्यादा सुरक्षित, तेज, जीवन बचाने वाला और तमाम मुश्किल आसान करने वाला हो गया है.
Social Plugin