लखनऊ : सारकोमा कनेक्टिव टिशू कैंसर होता है. इसमें बोन सारकोमा और सॉफ्ट टिशू जैसे मसल्स, टेंडन्स, लिगामेंट्स, नस और वेसल्स का सारकोमा होता है.
बच्चों की बात की जाए तो उनमें सबसे ज्यादा होने वाला सारकोमा ओस्टियोसारकोमा, इविंग सारकोमा और रैब्डोमायोसारकोमा होता है. इसमें अपर और लोअर लिम्ब सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं.
वैसे सारकोमा शरीर के किसी भी हिस्से पर असर डाल सकता है. मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल साकेत (नई दिल्ली) में मस्क्यूलोस्केलेटल ऑन्कोलॉजी एंड कैंसर केयर के सीनियर डायरेक्टर डॉक्टर अक्षय तिवारी ने बताया कि बोन और सॉफ्ट टिशू सारकोमा की 100 से ज्यादा कैटेगरी होती हैं.
सारकोमा के लक्षण
सॉफ्ट टिशू सारकोमा के ज्यादातर मामलों में दर्द रहित सूजन होती है, वहीं बोन सारकोमा में सूजन के साथ हड्डी में दर्द भी होता है और कई मामलों में इससे हड्डी का फ्रैक्चर तक हो जाता है. जो बच्चे और नौजवान खेलते हैं
तो उनमें इन लक्षणों को आमतौर पर चोट समझ लिया जाता है और इसके डायग्नोज व ट्रीटमेंट देरी हो जाती है.
हालांकि, ये कहा जाता है कि 5 सेमी से ज्यादा सूजन हो या चोट के कारण दर्द हो और लगातार इलाज के बाद भी कोई सुधार न हो रहा हो तो स्पेशलिस्ट डॉक्टर को दिखाना चाहिए.
डायग्नोसिस और इलाज
अगर सारकोमा को शक हो तो एक्स-रे, एमआरआई, सीटी स्कैन और बायोप्सी के जरिए इसकी पुष्टि की जाती है.
इस बात का ध्यान रखें कि जिस सेंटर पर सारकोमा स्पेशलिस्ट की टीम हो वहां बायोप्सी कराएं. सारकोमा की पुष्टि होने पर ज्यादातर मामलों में सर्जरी की जाती है और ट्यूमर को हटाया जाता है
और फिर रिकंस्ट्रक्शन किया जाता है. यह "अंग निस्तारण सर्जरी" आज के समय में सरकोमा सर्जरी का मुख्य आधार है,
और यह तभी संभव है जब मरीज सरकोमा यूनिट तक जल्दी पहुंच जाए. बढ़ती उम्र के बच्चों में रिकंस्ट्रक्शन काफी चुनौतीपूर्ण हो जाता है क्योंकि उनकी हड्डियों छोटी होती हैं
और अंगों की असामान्य वृद्धि के कारण और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है जिससे अंग की लंबाई में विसंगति होती है.
डायग्नोसिस के आधार पर मरीजों को कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी की भी सलाह दी जाती है.
अन्य दुर्लभ बीमारियों की तरह सारकोमा को स्पेशलाइज्ड मल्टी डिसिप्लिनरी सारकोमा टीम बेहतर प्लानिंग के साथ ठीक करती है.
सारकोमा के प्रति जागरूक करने के लिए क्या किया जा सकता है?
अस्पतालों, मरीजों के एडवोकेसी ग्रुप, एनजीओ, स्कूल और कॉलेजों को इस रेयर कैंसर के बारे में जागरूक करने का वातावरण बनाना चाहिए. माता-पिता और देखभाल करने वाले लोगों को ये जानकारी होनी चाहिए कि बच्चों को हड्डियों का कैंसर हो सकता है,
जिसे लिंब सेविंग सर्जरी और कीमोथेरेपी के जरिए ठीक किया जा सकता है. कोई भी सूजन या गांठ जिसका साइज 5 सेमी यानी नींबू के साइज से बड़ा हो और उसमें दर्द होता हो, उसे सारकोमा समझना चाहिए और उसके मुताबिक ही जांच करानी चाहिए.
अगर कोई मरीज सारकोमा का संदिग्ध हो तो स्पेशलाइज्ड सारकोमा यूनिट में भेजना चाहिए. डायग्नोसिस के लिए सारकोमा सर्जरी से ही बायोप्सी कराई जानी चाहिए क्योंकि गलत बायोप्सी से अंगों को नुकसान हो सकता है.
अच्छी बात ये है कि एनजीओ और पेशेंट सपोर्ट ग्रुप सारकोमा यूनिट्स के साथ मिलकर काम कर रहे हैं, लोगों में अवेयरनेस बढ़ा रहे हैं और इलाज के जरिए मरीजों की मदद कर रहे हैं.
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