गुरुग्राम : सीके बिरला अस्पताल गुरुग्राम में एक्टोपिक प्रेग्नेंसी के मामले में देश की पहली रोबोट असिस्टेड सर्जरी की गई है. ये सर्जरी 44 वर्षीय महिला की हुई जो पूरी तरह सफल रही. सीके बिरला अस्पताल गुरुग्राम में ऑब्सटेट्रिक्स एंड गाइनेकोलॉजी की डायरेक्टर डॉक्टर अरुणा कालरा के नेतृत्व वाली टीम में रोबोट की मदद से ये सर्जरी की जिसके परिणामस्वरूप महिला एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे पाई. एक्टोपिक प्रेग्नेंसी के मामले जटिल होते हैं और इनमें मृत्यु दर 5-10 फीसदी होती है. अगर समय पर देखभाल न की जाए तो हेमोरैगिक शॉक सिंड्रोम के कारण मौत हो सकती है. इसके अलावा पूरी बॉडी में ब्लड वेसल्स में खून के थक्के जम जाने से मल्टी ऑर्गन फेल होने का खतरा रहता है.
अस्पताल में भर्ती होने के वक्त महिला को गंभीर पेट दर्द और हाइपोटेंशन था. अल्ट्रासाउंड करने पर यूट्रस का एक आसन्न टूटा पाया गया. महिला ने पहले भी कई बार प्रेग्नेंसी के लिए प्रयास किए, लेकिन वो असफल रही थी. 2014 में जब वो पहली बार प्रेग्नेंट हुईं तो 28वें सप्ताह में बेबी के एब्नॉर्मल होने का पता चला. बेबी को स्पाइना बिफिडा था, यानी उसकी स्पाइन और स्पाइनल कॉर्ड ठीक से विकसित नहीं हो पाई थी, रीढ़ की हड्डी में गैप था. सीजेरियन किया गया, लेकिन बेबी गर्भ के अंदर ही दम तोड़ गया.
इसके बाद महिला ने फिर कंसीव करने का प्रयास किया लेकिन इस बार उनकी ट्यूब ब्लॉक निकलीं जिसके कारण वो नेचुरल तरीके से कंसीव कर पाने में सक्षम नहीं थीं. आखिरकार उन्होंने आईवीएफ का रास्ता चुना लेकिन इस बार ये एक्टोपिक प्रेग्नेंसी का मामला बन गया. स्कार एक्टोपिक गर्भावस्था आगे बढ़ने पर टूट गई होगी, इसलिए इसे रोबोटिक असिस्टेड सर्जरी के जरिए हटा दिया गया. एक बार फिर महिला प्रेग्नेंट हुई और इस बार ये सफल आईवीएफ प्रेग्नेंसी थी. स्कार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि रोबोटिक सर्जरी के वक्त इसमें डबल लेयर लगाई गई थी. इस तरह सिजेरियन के सहारे महिला ने एक स्वस्थ बेबी को जन्म दिया.
इस मामले में रोबोटिक असिस्टेड सर्जरी का विकल्प इसलिए चुना गया क्योंकि स्कार एक्टोपिक प्रेग्नेंसी निचले यूट्रिन हिस्से में थी जो दोनों यूट्रिन वेसल के बहुत करीब थी जहां से यूट्रस में ब्लड सप्लाई होता है. सर्जरी करने के लिहाज से ये एरिया काफी रिस्की होता है.
मूत्राशय एक्टोपिक प्रेग्नेंसी साइट पर चिपका होता है, जिससे विच्छेदन बहुत ही कठिन हो जाता है. पहले से ही रिस्क में चल रहे मरीज में रक्त वाहिकाओं को कटने से मुश्किलें पैदा हो सकती हैं. मूत्राशय को अलग करने के लिए एक छोटा भी कट मूत्राशय को पंचर कर सकता है अगर इसमें रोबोटिक डिवाइस के अलावा कुछ और इस्तेमाल किया जाए तो. इसमें सर्जरी के बाद होने वाले कॉम्प्लिकेशंस से रिकवरी में भी कठिनाई आ सकती है. ऐसी सर्जरी तभी सफल हो पाती हैं जब ये किसी विशेषज्ञ द्वारा रोबोटिक तकनीक से की गई हो. तब इसके रिजल्ट बहुत अच्छे आते हैं, इसमें कोई ब्लड लॉस नहीं होता है, कोई टिशू इंजरी नहीं होती है और मरीज को उसी दिन डिस्चार्ज दे दिया जाता है. इसमें टांके इतनी मजबूती से लगाए जाते हैं कि मरीज सर्जरी के महज 3 महीने बाद प्रेग्नेंसी के लिए फिट रहती है.
सीके बिरला अस्पताल गुरुग्राम में ऑब्सटेट्रिक्स एंड गाइनेकोलॉजी की डायरेक्टर डॉक्टर अरुणा कालरा ने बताया, ''स्कार प्रेग्नेंसी का ये एक रेयर केस था जो एक सिजेरियन सेक्शन के परिणामस्वरूप हुआ था. क्योंकि हमने स्कार को रोबोटिक प्रक्रिया से ठीक किया, इसलिए इस बार बच्चे को जन्म देना आसान हो गया. सिजेरियन सेक्शन रेट में वृद्धि के कारण स्कार एक्टोपिक प्रेग्नेंसी की घटनाएं भी बढ़ रही हैं. मौजूदा वक्त में विश्व स्तर पर ये सबसे प्रचलित सर्जिकल ऑपरेशन है.
रप्चर्ड एक्टोपिक प्रेग्नेंसी एक ऐसी भयावह स्थिति है जिससे पेरिटोनियल कैविटी में 2-3 लीटर ब्लड लॉस होता है. गर्भाशय के टूटने को रोकने के लिए रोगी का डायग्नोज और ऑपरेशन किया गया, क्योंकि उससे मरीज की जान जा सकती थी. एक्टोपिक प्रेग्नेंसी के मामले में गर्भधारण के पहले तीन महीनों में 9-14 फीसदी मृत्यु दर रहती है, और गर्भधारण के कुल मामलों में इसके 5-10 फीसदी होते हैं. इसमें मौत हेमोरैग और शॉक सिंड्रोम के कारण होती है यानी मल्टी ऑर्गन फेल्योर हो जाता है और ब्लड वेसल्स में खून के थक्के जम जाते हैं. इसके अलावा, सिजेरियन डिलीवरी बढ़ने के कारण स्कार प्रेग्नेंसी रेट में बढ़ोतरी और इस्थमोसेल में वृद्धि हो सकती है. इस तरह की घटना, जिसे स्कार एक्टोपिक प्रेग्नेंसी के रूप में जाना जाता है, बहुत दुर्लभ है और 1500-2000 गर्भधारण में से लगभग 1 में ऐसी समस्या होती है. हालांकि इसका प्रसार बढ़ रहा है.''
एक्टोपिक प्रेग्नेंसी की स्थिति तब होती है जब फर्टिलाइज़ एग इम्प्लांट होता है और यूट्रस की मुख्य कैविटी के बाहर इसकी ग्रोथ होती है. यानी गर्भधारण अपनी सही जगह नहीं होता. कई मामलों में ये समस्या खुद ही सुधर जाती है और प्रेग्नेंसी टिशू नेचुरल तरीके से सर्विक्स से निकल जाते हैं, जबकि कई मामलों में छठे सप्ताह में ये समस्या पैदा करते हैं. 100 में 1 प्रेग्नेंसी एक्टोपिक होती है और इस कंडीशन को महिलाओं के लिए इमरजेंसी माना जाता है. मरीज या डॉक्टर इस स्थिति को समझने में फेल भी हो सकते हैं, ऐसे में अगर इसका इलाज न हो पाए तो ये जानलेवा साबित हो सकता है.
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