मेरठ: हाल के वर्षों में, भारत में युवा महिलाओं के बीच स्तन कैंसर के मामलों में चिंताजनक वृद्धि देखी गई है। जो बीमारी पहले केवल वृद्ध महिलाओं में होने वाली समझी जाती थी, अब वह 40 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में तेजी से देखी जा रही है। इस बदलाव ने विशेषज्ञों को इस गंभीर प्रवृत्ति के पीछे के कारणों का पता लगाने के लिए प्रेरित किया है।
मनोरंजन उद्योग और प्रशंसकों के लिए यह एक झटका था जब 36 वर्षीय प्रसिद्ध टेलीविजन अभिनेत्री हिना खान को तीसरे चरण का स्तन कैंसर होने का पता चला। उनका मामला युवा महिलाओं में स्तन कैंसर की बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाता है, जिससे सार्वजनिक जागरूकता और शुरुआती पहचान के प्रयासों की तात्कालिकता और भी बढ़ जाती है।
मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, वैशाली की सर्जिकल ऑन्कोलॉजी (स्तन) विभाग की निदेशक, डॉ. रजिंदर कौर सग्गू ने कहा कि “स्तन कैंसर के खिलाफ लड़ाई में प्रारंभिक निदान (डायग्नोसिस) बेहद महत्वपूर्ण है। सभी उम्र की महिलाओं को अपने स्तन स्वास्थ्य के प्रति सतर्क रहने के लिए प्रेरित करना आवश्यक है। नियमित स्व-परीक्षण और समय पर चिकित्सा परामर्श शुरुआती पहचान को सुविधाजनक बना सकते हैं, जिससे प्रभावी उपचार की संभावना काफी बढ़ जाती है। जैसे-जैसे युवा महिलाओं में स्तन कैंसर की दरें बढ़ती जा रही हैं, यह महत्वपूर्ण है कि जागरूकता फैलाई जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि सभी उम्र की महिलाओं के पास अपने स्वास्थ्य की रक्षा के लिए आवश्यक जानकारी और संसाधन उपलब्ध हों। प्रारंभिक पहचान जीवन बचाती है, और मिलकर हम इस दिशा में एक बड़ा फर्क ला सकते हैं।
डॉ. रजिंदर ने आगे कहा कि “हाल ही में, मैंने एक 24 वर्षीय स्तनपान करा रही माँ की सर्जरी की, जिसे गर्भावस्था के दौरान स्तन कैंसर का पता चला था। यह दुर्लभ है, लेकिन युवा महिलाओं में स्तन कैंसर के मामलों में बढ़ोतरी के कारण अब यह स्थिति अधिक सामान्य होती जा रही है। इस महिला की उपचार के दौरान दिखाई गई ताकत और धैर्य वास्तव में प्रेरणादायक था। यह मामला यह दर्शाता है कि जागरूकता और शुरुआती पहचान कितनी महत्वपूर्ण है, खासकर 20 और 30 की उम्र की महिलाओं के लिए।“
गर्भावस्था या स्तनपान के दौरान स्तन कैंसर दुर्लभ है, लेकिन युवा उम्र में निदान (डायग्नोस) होने वाले मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए इसकी दर में वृद्धि हो रही है। यह स्थिति विशेष रूप से गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान अधिक जागरूकता और सतर्कता की आवश्यकता को उजागर करती है।
डॉ. रजिंदर ने आगे कहा कि “युवा महिलाओं के लिए प्रमुख चिंताएँ निदान में देरी या गलत निदान से शुरू होती हैं, जिससे उनके उपचार में बाधा आ सकती है। घने स्तनों वाली महिलाओं में स्तन कैंसर का जोखिम फैटी स्तनों की तुलना में चार गुना अधिक होता है, और आमतौर पर इनमें अधिक आक्रामक कैंसर के प्रकार देखने को मिलते हैं। इसके अतिरिक्त, कई युवा महिलाएं अभी तक परिवार शुरू नहीं कर पाई होती हैं, जिसके चलते उनके लिए प्रजनन संबंधी चिंताएँ उभरती हैं। कीमोथेरेपी से प्रेरित समय से पहले रजोनिवृत्ति भी एक बड़ी समस्या होती है। आनुवांशिक उत्परिवर्तन की अधिकता, साथ ही बाल और अंगों की हानि के कारण यौनता और शारीरिक छवि से जुड़े मुद्दे भी प्रमुख चिंताएँ हैं।“
विशेषज्ञ इस चिंताजनक प्रवृत्ति में योगदान करने वाले विभिन्न कारकों की जांच कर रहे हैं, जिनमें मोटापा, तनाव, जीवनशैली विकल्प, और देर से गर्भधारण (25 वर्ष के बाद) शामिल हैं। युवा महिलाओं में स्तन कैंसर अक्सर अधिक आक्रामक होता है और कई मामलों में उन्नत चरणों में निदान (डायग्नोसिस) किया जाता है। उल्लेखनीय है कि इनमें से 25% मामले ट्रिपल-नेगेटिव होते हैं, जो एक विशेष रूप से आक्रामक प्रकार का स्तन कैंसर है जिसमें मेटास्टेसिस का जोखिम अधिक होता है।
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