मेनोपॉज महिलाओं के जीवन में एक स्वाभाविक जैविक बदलाव है, जो उनके प्रजनन काल के अंत को दर्शाता है। यह कोई बीमारी नहीं है, लेकिन इसके साथ होने वाले हार्मोनल और शारीरिक परिवर्तन कई स्वास्थ्य चुनौतियों को जन्म दे सकते हैं। ऐसे में महिलाओं के लिए यह समझना आवश्यक है कि कैसे इन बदलावों को प्रबंधित कर एक स्वस्थ और पूर्ण जीवन जिया जा सकता है।
मेनोपॉज आमतौर पर 45 से 55 वर्ष की आयु के बीच होता है, जिसमें अंडाशयों की कार्य क्षमता में गिरावट के कारण मासिक चक्र समाप्त हो जाता है। इस दौरान एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे महत्वपूर्ण हार्मोनों का स्तर गिर जाता है, जिसके परिणामस्वरूप हॉट फ्लैश, रात में पसीना आना, मूड स्विंग, थकान और नींद की समस्या जैसे लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं।
इसके अलावा, एस्ट्रोजन के स्तर में कमी से हड्डियों की ताकत कम हो सकती है, जिससे ऑस्टियोपोरोसिस और फ्रैक्चर का खतरा बढ़ता है। वहीं, हृदय स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ता है क्योंकि एस्ट्रोजन दिल की बीमारियों से बचाव करता है। इस दौरान वजन बढ़ना, मेटाबॉलिक परिवर्तन, डायबिटीज और हाइपरटेंशन का खतरा भी बढ़ जाता है।
न्यूबेला सेंटर फॉर विमेंस हेल्थ की, निदेशक डॉ. गीता श्रॉफ ने बताया कि मेनोपॉज की चुनौतियों से बेहतर तरीके से निपटने के लिए जीवनशैली में बदलाव, नियमित चिकित्सा देखभाल और भावनात्मक समर्थन महत्वपूर्ण हैं। संतुलित आहार, जिसमें कैल्शियम, विटामिन डी और प्रोटीन शामिल हों, हड्डियों को मजबूत करता है, जबकि सब्जियां, फल, साबुत अनाज और स्वस्थ वसा हृदय स्वास्थ्य और वजन प्रबंधन में मददगार होते हैं। नियमित व्यायाम जैसे वॉकिंग, योग और वेट बियरिंग एक्सरसाइज न केवल हड्डियों को मजबूत करते हैं बल्कि मेटाबॉलिज्म और मानसिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाते हैं।
पर्याप्त पानी का सेवन हॉट फ्लैश पर नियंत्रण और त्वचा की गुणवत्ता बनाए रखने में सहायक होता है। इसके अलावा, मेनोपॉज के बाद ऑस्टियोपोरोसिस, हृदय रोग और डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए नियमित स्वास्थ्य जांच, जैसे हड्डी घनत्व परीक्षण, लिपिड प्रोफाइल और ब्लड शुगर मॉनिटरिंग आवश्यक हैं ताकि इन समस्याओं का समय रहते प्रबंधन किया जा सके।
डॉ. गीता ने आगे बताया कि मेनोपॉज़ अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है। यह जीवन के उस दौर का प्रतीक है जब महिलाएं खुद को प्राथमिकता दे सकती हैं और अपने स्वास्थ्य को नए सिरे से परिभाषित कर सकती हैं। सही जानकारी, संतुलित जीवनशैली और विशेषज्ञों की मदद से महिलाएं इस बदलाव को आत्मविश्वास के साथ अपना सकती हैं।
मेनोपॉज को आत्मनिर्भरता, जागरूकता और सशक्तिकरण के अवसर के रूप में अपनाकर महिलाएं एक खुशहाल और रोग-मुक्त जीवन का आनंद ले सकती हैं।
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