बांझपन की समस्या और नई तकनीक की जरूरत:
विश्व स्तर पर लगभग 15 प्रतिशत दंपतियों को गर्भधारण में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कई बार इसके कारण स्पष्ट नहीं होते, तो कभी-कभी शुक्राणु (स्पर्म) की संख्या कम होती है, शुक्राणु की गति कम होती है, या फिर महिला की फैलोपियन ट्यूब आंशिक रूप से बंद होती हैं। ऐसे मामलों में आईयूआई एक अच्छी तकनीक मानी जाती है। हालांकि, पहले इसकी सफलता दर बहुत ज्यादा नहीं थी, इसलिए डॉक्टर और वैज्ञानिक लगातार इसे बेहतर बनाने पर काम कर रहे थे।
अब यह नई आईयूआई तकनीक आई है, जिसमें उन्नत (एडवांस) तरीके अपनाए गए हैं। इसमें विशेष रूप से सटीक ओव्यूलेशन मॉनिटरिंग (अंडोत्सर्जन यानी अंडाणु निकलने की प्रक्रिया पर नजर रखना), उन्नत शुक्राणु तैयारी और गर्भाशय को गर्भधारण के लिए अधिक अनुकूल बनाने जैसे महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। इन सबके कारण अब दंपतियों को ज्यादा सफलता मिलने लगी है।
यह तकनीक किन लोगों के लिए फायदेमंद है?
यह नई आईयूआई तकनीक उन लोगों के लिए बहुत लाभकारी साबित हो रही है:
- जिन्हें बांझपन का कोई स्पष्ट कारण नहीं मिला – कई बार डॉक्टर भी यह नहीं समझ पाते कि गर्भधारण क्यों नहीं हो रहा, ऐसे में यह तकनीक मददगार है।
- जिन महिलाओं की फैलोपियन ट्यूब आंशिक रूप से अवरुद्ध (ब्लॉक) होती हैं – इस स्थिति में स्पर्म का अंडाणु तक पहुंचना मुश्किल होता है। यह तकनीक इसे आसान बनाती है।
- पुरुषों में कम शुक्राणु या उनकी गति में कमी की समस्या – स्पर्म कमजोर हो तो यह तकनीक उसे बेहतर तरीके से गर्भाशय में पहुंचाने में मदद करती है।
- जो आईवीएफ (IVF) से पहले एक कम खर्चीला विकल्प तलाश रहे हैं – आईवीएफ बहुत महंगा और जटिल उपचार है, लेकिन आईयूआई की यह नई तकनीक अधिक किफायती और सरल है।
यह तकनीक कैसे काम करती है?
इस नई आईयूआई तकनीक में कई खास चीजें की जाती हैं, जिससे गर्भधारण की संभावना बढ़ती है:
- सटीक ओव्यूलेशन मॉनिटरिंग – इसका मतलब है कि महिला के शरीर में अंडाणु कब तैयार हो रहा है, इस पर पूरी नजर रखी जाती है। जब सही समय होता है, तभी प्रक्रिया की जाती है।
- बेहतर शुक्राणु तैयारी – शुक्राणु को विशेष तकनीकों से तैयार किया जाता है ताकि वे अधिक स्वस्थ और सक्रिय रहें।
- गर्भाशय को अधिक अनुकूल बनाना – गर्भाशय को ऐसा बनाया जाता है कि निषेचन (फर्टिलाइज़ेशन) की संभावना बढ़ जाए।
मरीजों के लिए इसके फायदे क्या हैं?
- कम उपचार चक्र की जरूरत – पहले कई बार कोशिश करनी पड़ती थी, लेकिन अब अधिकतर मामलों में पहले ही चक्र में सफलता मिल रही है।
- समय और पैसा बचता है – बार-बार इलाज कराने की जरूरत नहीं पड़ती, जिससे मरीजों का समय और खर्च दोनों कम होता है।
- कम दर्द और भावनात्मक तनाव – यह तकनीक कम जटिल और कम पीड़ादायक है, जिससे मरीजों को कम तनाव महसूस होता है।
- हर सामाजिक-आर्थिक वर्ग के लिए सुलभ – आईवीएफ की तुलना में यह अधिक सस्ता है, जिससे सामान्य मध्यम वर्ग के लोग भी इसका फायदा उठा सकते हैं।
कई ऐसे दंपति हैं, जिन्होंने पारंपरिक आईयूआई में बार-बार असफलता का सामना किया, लेकिन इस नई तकनीक के पहले ही प्रयास में उन्हें सफलता मिल गई। उनका अनुभव इस बात को साबित करता है कि यह तरीका बांझपन से जूझ रहे कई दंपतियों के लिए एक बड़ी उम्मीद लेकर आया है।
न्यूबेला सेंटर फॉर वुमेन हेल्थ की निदेशक डॉ. गीता श्रॉफ कहती हैं, "हमारी नई आईयूआई तकनीक ने कई दंपतियों के लिए गर्भधारण को संभव बनाया है। यह सिर्फ एक तकनीकी सुधार नहीं है, बल्कि यह दंपतियों के मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखती है।
उन्होंने आगे बताया कि उनके केंद्र में मरीजों को पूरी देखभाल और परामर्श सेवाएं दी जाती हैं, ताकि वे आत्मविश्वास से इस प्रक्रिया को अपना सकें।
यह नई आईयूआई तकनीक उन दंपतियों के लिए एक नई रोशनी की तरह है, जो अब तक असफलता का सामना कर रहे थे। इसकी उच्च सफलता दर ने कई लोगों को माता-पिता बनने का सपना पूरा करने का मौका दिया है। यह तकनीक न केवल अधिक प्रभावी है, बल्कि सस्ती और कम जटिल भी है, जिससे अधिक लोग इसका लाभ उठा सकते हैं। आने वाले समय में यह बांझपन के उपचार में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकती है।
Social Plugin