पटना: गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (GI) कैंसर दुनियाभर में मृत्यु और अपंगता के प्रमुख कारणों में से एक हैं। इनमें इसोफैगस (ग्रासनली), पेट, बड़ी आंत, रेक्टम, पैंक्रियास, गॉल ब्लैडर, बाइल डक्ट, और लिवर के कैंसर शामिल हैं। GI कैंसर दुनिया में हर चौथे कैंसर और हर तीसरी कैंसर से होने वाली मृत्यु के लिए जिम्मेदार हैं। भारत में इन मामलों की संख्या जनसंख्या वृद्धि, उम्र बढ़ने और जीवनशैली तथा खानपान के पश्चिमीकरण के कारण तेजी से बढ़ रही है। चूंकि ये कैंसर आक्रामक होते हैं और इनके परिणाम गंभीर हो सकते हैं, इसलिए इनकी रोकथाम, समय-समय पर स्क्रीनिंग और शुरुआती पहचान पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है।
रोकथाम का मतलब है किसी बीमारी को होने से पहले ही रोक देना। संतुलित और पोषक तत्वों से भरपूर आहार जिसमें फल, सब्ज़ियां, साबुत अनाज शामिल हों, तथा प्रोसेस्ड फूड, रेड मीट, प्रोसेस्ड मीट और अधिक चीनी से परहेज, GI कैंसर की रोकथाम में मदद कर सकता है। नियमित व्यायाम, स्वस्थ वजन बनाए रखना, तंबाकू और शराब से दूरी बनाए रखना भी जरूरी है। इसके अलावा GERD, इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज, फैटी लिवर, हेपेटाइटिस और कोलोन पॉलिप जैसी बीमारियों का समय पर इलाज भी कैंसर के खतरे को कम कर सकता है। हेपेटाइटिस B से बचने के लिए वैक्सीन लगवाना लीवर कैंसर से सुरक्षा प्रदान करता है।
मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, साकेत के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के सीनियर डायरेक्टर डॉ. निखिल अग्रवाल ने बताया कि “गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (GI) कैंसर की स्क्रीनिंग उन लोगों में की जाती है जिन्हें फिलहाल कोई लक्षण नहीं हैं, लेकिन उनमें कैंसर का खतरा अधिक होता है। इसका मुख्य उद्देश्य कैंसर को उसकी शुरुआती अवस्था में पहचानना होता है, जिससे उपचार अधिक प्रभावी हो सके। स्क्रीनिंग एक नियमित प्रक्रिया होती है और इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के परीक्षण किए जाते हैं, जैसे कोलोरेक्टल कैंसर के लिए कोलोनोस्कोपी या मल की जांच, इसोफेगस और पेट के कैंसर के लिए एंडोस्कोपी, लीवर कैंसर के लिए अल्ट्रासाउंड, AFP और अन्य इमेजिंग टेस्ट तथा पैंक्रिएटिक कैंसर के लिए MRI जैसे इमेजिंग जांच। इन स्क्रीनिंग विधियों से समय रहते कैंसर की पहचान संभव होती है, जिससे जीवन बचाया जा सकता है।“
डॉ. निखिल ने आगे बताया कि “किसी भी कैंसर का सफल इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि उसका निदान किस चरण में किया गया है। अगर बीमारी को शुरुआती अवस्था में पहचाना जाए, तो उपचार अधिक प्रभावी होता है और जीवन बचने की संभावना बढ़ जाती है। गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (GI) कैंसर की समय पर पहचान के लिए इसके लक्षणों को समझना बेहद जरूरी है। इन लक्षणों में निगलने में कठिनाई, पेट दर्द, बार-बार उल्टी, बिना वजह वजन घटना, भूख न लगना, खून की उल्टी या मल में खून, मल त्याग की आदतों में बदलाव, पतला मल, थकान, पेट में लगातार असहजता, अपच, पीलिया, मिट्टी जैसे रंग का मल, खुजली, हाल ही में डायबिटीज का पता चलना, पेट में गांठ, एनीमिया और आवाज़ में बदलाव शामिल हो सकते हैं। इन संकेतों के प्रति जागरूक रहकर और समय पर चिकित्सा सलाह लेकर GI कैंसर की जल्द पहचान और प्रभावी इलाज संभव हो सकता है।“
शुरुआती अवस्था में ये लक्षण हल्के हो सकते हैं या दिखाई ही नहीं देते। इनमें से कई लक्षण सामान्य पाचन संबंधी समस्याओं में भी पाए जाते हैं, जिससे अक्सर लोग इन्हें नज़रअंदाज़ कर देते हैं। लेकिन अगर ये लक्षण बार-बार हो रहे हैं, बिगड़ रहे हैं या ठीक नहीं हो रहे हैं, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
GI कैंसर की रोकथाम, स्क्रीनिंग और शुरुआती पहचान ही बेहतर इलाज और जीवन बचाने की कुंजी है। स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर, नियमित जांच कराकर और लक्षणों को अनदेखा न करके, हम इन कैंसर का खतरा कम कर सकते हैं और समय रहते प्रभावी इलाज सुनिश्चित कर सकते हैं। आइए, मिलकर जागरूकता फैलाएं और GI कैंसर की समय रहते पहचान व रोकथाम को प्राथमिकता दें—यह ज़िंदगियां बचा सकता है।
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